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Friday, June 27, 2014

स्टेशनरी शॉप...

नुक्कड़ की स्टेशनरी शॉप वाले अंकल,

सुना है आपकी दुकान अब बंद होने वाली है। आपकी दुकान से जुड़ी मेरी बहुत-सी यादें हैं, जिनके बारे में मैं अबतक सोचती हूँ । आप सोचेंगे आपकी दुकान से मेरी ऐसी कौन सी यादें जुड़ी है.. तो मैं कहूँगी, जुड़ी हैं, बहुत सारी यादें जुड़ी हैं । ज़रूरी नहीं होता कि किसी की याद हमें तभी आये, जब सामने वाला भी हमें याद करता हो । मैं जब कभी किसी भी स्टेशनरी शॉप के बगल से गुज़रती हूँ, मुझे अपनी वो तमाम बातें याद आती हैं.. जो मैंने आपकी दुकान के काउंटर पर खड़े हुए संजोयी थी । वहीँ, जहां मैंने कई बार अपनी इच्छाओं को इरेज़र से मिटाया था ।

मैं आपकी दुकान पर जाती और अपने सारे पसंदीदा सामानों के दाम पूछकर वापस आ जाती.. इस काम को मैं हर बार करती जब भी आपकी दुकान में कुछ नया टंगा नज़र आता । वो कई नोंक वाली पेंसिल आती थी ना.. जिसमें से एक की नोंक खतम हो जाए तो पीछे से दूसरा निकाल कर डाल दो, और बाहर से अंदर का सबकुछ दिखता था । वो पेंसिल मुझे बहुत पसंद थी । मेरी क्लास में एक लड़की के पास वैसी ही पेंसिल थी, सभी रंगों की.. वो हर रोज़ सबको दिखाती । पर मेरी पेंसिल बॉक्स से वैसी पेंसिल नदारद थी ।

मैंने आपकी दुकान पर उस पेंसिल के कई रंग पसंद कर रखे थे । पीला और गुलाबी मुझे सबसे ज़्यादा अच्छा लगता था । लेकिन गुज़रते हुए जब आपकी दुकान में देखती तो हर रोज़ मेरी पसंद की एक पेंसिल वहाँ से गायब हो जाती । शायद मुझसे ज़्यादा वो पेंसिल किसी और को पसंद थे.. उसकी पसंद पूरी हो जाती.. मेरी पसंद विंडो शॉपिंग बन जाती ।

एक और था, कई रंगों वाले पेंसिल का पैकेट । स्केच पेन से थोड़ा महंगा आता था.. वो भी पसंद था मुझे । कॉपी के सादे पन्नों पर कई चित्र बनाए थे, सोचा था वो पेंसिल जब मेरे पास आएगी तब उनमें रंग भरुंगी ।

पर वो सारे चित्र अब भी अधूरे है.. कुछ तो खराब हो गए.. कुछ फेंक दिए, आपकी स्टेशनरी की दुकान पर देखे ख्वाबों की तरह ।

पर अब जब भी किसी को ऐसी चीज़ पसंद करते हुए देखती हूँ, तुरंत खरीद कर देती हूँ । दीदी के बच्चों को कई बार लाकर दिया, ड्राइंग बुक के साथ वो रंग-बिरंगी पेंसिल । जब वो मुस्कुराकर उसे इस्तेमाल करते हैं, मेरे सपने हंसने लगते हैं । मैं ख़ुद को वहीं, आपकी काउंटर पर खड़ी पाती हूँ.. खिलखिलाकर हँसती हुई.. सारे सामान अपने हाथों में लिए ।

आपकी दुकान ने मेरे सपनों को भले ही पूरा न किया हो, लेकिन किसी और के सपनों को अधूरा ना रहने देने की ताक़त दी है । सच बताऊँ तो मुझे अब महंगे पेन अच्छे नहीं लगते.. ऐसा लगता है उनसे हैंडराइटिंग ही नहीं बन रही । आप अपनी दुकान बंद मत होने दीजिये.. क्या पता अब भी मेरी तरह कोई रोज़ आपकी दुकान के चक्कर लगाती हो। प्लीज़, उसके ख़्वाबों का शटर मत गिराइए ।  उसके सपने तो बंद नहीं होने चाहिए न !

आपकी ग्राहक,
जिसने आपकी दुकान से शायद ही कभी कुछ ख़रीदा हो ।

4 comments:

  1. पहले बात कहानी की करता हूँ, इस छोटे से कथानक और इसके कंटेंट के चित्रण ने विस्मित किया है। पहली बार मैं देखता रह गया कि किस प्रकार गाने के संगीत की तर्ज पर कहानी शुरू हुई और अपनी अभिव्यक्ति के ऐहसास छोड़ती हुई एक गाने की तरह ही समाप्त हो गयी। पहली विशेषता है कि इस कहानी को हर बार एक से अधिक बार पढ़ना होता है और सरलता से पढ़ा भी जाता है। न बड़े शब्दों का बोझ, न विन्यास की कसरत न ही पाठक को कदम कदम पर चौंका डालने वाला घटनाक्रम। यह अद्भुद है कि सीधे सरल शब्दों में सीधे सरल जीवन के भीतर पड़े मनोवैज्ञानिक आयाम को सरलता से चित्रित किया गया और पाठक उन्हीं भावनाओं में बहता रहा जिनसे कहानी के व्यक्तित्व के कपाट खुलते हैं। भावनाओं के मार्मिक बहाव में इतनी सादगी सच में यह विस्मित करने वाला लेखन है।

    आँचल तुमने जिस गहराई से गद्य लेखन की अपनी शैली को विकसित किया है वह मुझे आश्चर्य में डालता है। कोई झिझक नहीं यह कहने में कि तुम बड़े लेखक के रूप में तेजी से विकसित हो रही हो, अपनी शैली और चित्रण पर पकड़ बनाये रखना। स्त्री लेखक होने का पूर्वाग्रह नहीं झलकता तुम में बल्कि वह तुम्हें अनुभव और अभिव्यक्ति की एडिशनल शक्ति दे रहा है। मै इस लेखन से प्रभावित हूँ और अब तुमसे इसी प्रकार कसी हुई सुंदर लेकिन लंबी कहानियों की अपेक्षा करता हूँ, वही अगला पड़ाव भी है। इस तेजी से गद्य की इतनी सुंदर विधा पकड़ने पर आँचल को दिल से बधाई ......:-)

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    1. Totally agreed with above comment.. beautifully penned! :)

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  2. Aanchal dear this is something awesome ... Loved it :) :)

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  3. बहुत कुछ नहीं पर कुछ कुछ ठीक ठीक है

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