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Monday, March 31, 2014

नीले आसमान के नीचे...

आओ कभी साथ..
यूँ ही नीले आसमान के नीचे,
हरी घास पर
सफ़ेद-पीली चादर बिछाकर
देर तलक गुफ़्तगू करेंगे ।

चाँद आजकल बेईमान हो चला है..
चुपचाप सारी बातें सुनता है..
ख़ुद की तारीफ़ पर बड़ा इतराता है..
दूर रहकर भी, हम जैसों को,
अपनी ठंडक से जलाता है...
बड़ा बेईमान है ये..

चलो ना, यूँ ही इसे जलाते हुए..
हम भी इसकी लौ में बैठे
इसको तकते रहें ।
अपनी मुहब्बत से...
इसे भी जलाते रहें ।

चलो ना, इसी बहाने
सुबह के सूरज का भी इंतज़ार कर ले ।
उसे भी अपने मुहब्बत का दीदार करा दें..
थोड़ा सा उसे भी जला दें ।

......

Sunday, March 30, 2014

लाइब्रेरी की मुलाक़ात !

किताबों की चहारदीवारी के बीच,
कविताओं वाले सेक्शन में..
एक ही किताब पर दोनों ने साथ हाथ रखा था..
फिर हम दोनों की नज़रों ने,
एक दूसरे को छुआ था..
ये थी हमारी पहली मुलाक़ात..
किताबों की चहारदीवारी के बीच,
लाइब्रेरी में ।

कविताएं पढ़ते-पढ़ते..
नजदीकियाँ बढती गयीं..
जैसे कविता की दो पंक्ति
एक साथ जुड़ती रहीं ।

कौमा, फुल स्टॉप, एक्सक्लामेशन सा
हमारा रिश्ता बढ़ता गया..
किताब की चहारदीवारी के बीच
कितना कुछ सिमटता-घटता चला गया ।

ऐसा हो, किसी दिन हम-तुम भी,
किसी कविता की किताब हो जाएँ..
ऐसी ही किसी चहारदीवारी में सुकून से रह पाएँ..
बस, समीक्षा और विश्लेषण से बच जाएँ..
ऐसे दुश्मनों को हम पहचान में भी ना आएँ !

ये थी हमारी पहली मुलाक़ात..
किताबों की चहारदीवारी के बीच,
लाइब्रेरी में ।

.....

Tuesday, March 11, 2014

यूँ ही...

बेवजह चाँद को देखकर दिल की बातें कह जाना..
प्यार जताने का ये भी इक तरीका है ।

गुमसुम खड़े होकर आसमान को तकना..
किसी के इंतज़ार का ये भी इक सलीका है ।

आईने झूठ नहीं बोलते, ज़रा ध्यान से देखो..
तुम्हारी मुस्कराहट का रंग आज ज़रा फ़ीका है ।

तस्वीर के अन्दर से झांकती तुम्हारी आँखें..
बताओ, क़त्ल करने का ये कौन-सा तरीका है ।