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Tuesday, June 17, 2014

युवती

लेबर रूम के बाहर खड़ा राजेश हाथों को मलते हुए इधर से उधर टहल रहा था । अरुणिमा अन्दर थी.. संसार के सबसे सुखद दर्द का अनुभव करते हुए । छह साल बाद ये दूसरी बार था जब वो ये सब अनुभव कर रही थी । छह साल पहले उत्कर्ष उसका नया जीवन बनकर इस दुनिया में आया था । डॉक्टर ने बाहर आकर खुशख़बरी दी, लड़की का जन्म हुआ है (आजकल उसे बेबी गर्ल कहा जाने लगा है) । राजेश ने डॉक्टर को हल्की स्माइल देकर थैंक यू कहा.. पर ख़ुशी से उछला नहीं । हॉस्पिटल में घर के बाकी लोग थे, तो राजेश ने अपनी भाभी को कहा, "ऑफिस से होकर आता हूँ.. तीन-चार घंटे में आ जाऊँगा" ।

इधर अरुणिमा को मैटरनिटी  वार्ड में शिफ्ट करा दिया गया था । पास में उसकी सम्पूर्णता का प्रतीक..उसकी नन्हीं कली, मुट्ठियाँ बंद किये आराम से सो रही थी । वो उसे देख कर मुस्कुराने लगी.. दिल से आने वाली मुस्कराहट की कोई परिभाषा नहीं होती.. बस ये कि अरुणिमा उस वक़्त इस संसार में ख़ुद को सबसे ज़्यादा ख़ुश महसूस कर रही थी । वो अभी अभी दुनिया में आयी अपनी बेटी को ध्यान से देखने लगी । फिर उसने राजेश को ढूँढा..वो चाहती थी कि इस वक़्त वो सबसे पहले अपने पति से मिले..लेकिन अरुणिमा ने भी काम ज़रूरी समझते हुए इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा।


इस बीच कमरे में घर के लोग आते-जाते रहे.. बीच-बीच में जब वो अकेली होती बस एकटक बच्ची को देखती रहती... कुछ याद करती रहती । देखते-देखते वो उसके होंठों के नीचे वाले हिस्से पर अपनी तर्जनी से गुदगुदी लगाती और खुद ही खिलखिलाकर हँसने लगती.. उसकी भींची मुट्ठियों के बीच अपनी ऊँगली के लिए जगह बनाती और उसकी मुट्ठी में अपनी ऊँगली पकड़ा देती ।
कितने दिनों से तो वो इंतज़ार कर रही थी इस पल का.. एक बेटी को जन्म देने का । दूसरे बच्चे के लिए राजेश तो राज़ी ही नहीं था, पर अरुणिमा की बस एक यही ख़्वाहिश अधूरी थी कि वो एक बेटी की माँ बने । समझाते-समझाते अपनी बात मनवाने में अरुणिमा को कुछ साल ज़रूर लगे, पर इस बीच उसने अपनी बेटी के लिए बहुत कुछ सोच लिया था..जो अभी तक इस दुनिया में आई भी नहीं थी । मन्नतों का सिलसिला भी जारी रहा.. जो प्रेगनेंसी के दौरान तक चला । अभी जब अरुणिमा ने अपनी ऊँगली अपनी बेटी की मुट्ठी में फंसाई हुई है, तो उसे लग रहा है उसने अपनी बेटी को नहीं, बेटी ने उसे जन्म दिया है । जन्म ही तो दिया है.. एक माँ को.. एक बेटी की माँ को

मुस्कुराते हुए अरुणिमा अपने प्रेगनेंसी के दिन याद करने लगी.. क्या-क्या तैयारियां कर ली थी उसने । उसे बेटी की इतनी ख़्वाहिश थी कि उसने नाम तक तय कर लिया था । राजेश से इस बारे में कई बार उसने पूछा, पर पति जी इस मसले पर ज्यादा इंटरेस्टेड नहीं थे । कितने सारे नाम सोच रखे थे, घर में किस नाम से पुकारेगी वो उसे - 'गोरैया' या 'चिड़िया', जो इधर से उधर फुदकती रहे या फिर 'अनोखी' । हमारे यहाँ तो बच्चों के दो नामों की परंपरा हैं ना, इसलिए उसने भी अच्छे वाले नाम के लिए 'आद्या' भी सोच रखा था.. 'अनन्ता' भी और 'विदिशा' भी । अभी अपनी बेटी को देखते हुए वो समझ ही नहीं पा रही थी कि कौन सा नाम सबसे सुन्दर होगा उसके लिए । उसने सोचा, चलो राजेश आ जाए फिर इस बात पर सोचेंगे । ज़्यादा हुआ तो पर्चियाँ उछाल लेंगे । हमारे देश की ये सबसे अच्छी बात है, हम किसी भी समस्या का समाधान पर्चियाँ उछाल कर आराम से कर लेते है ।



इस बीच कमरे में उसका बेटा उत्कर्ष दाखिल हुआ.. पिछले कुछ महीने में उसने अरुणिमा से न जाने कौन-कौन से सवाल कर लिए थे । अरुणिमा ने भी उसे बड़ी ही सहजता से बता दिया था कि इस फूले हुए पेट के अन्दर उसकी छोटी बहन है । वो पूछता, "शोटी बेबी पेट के अन्दर खाना त्या खाती है ?" अरुणिमा हर सवाल का जवाब देती.. उसके हिसाब से हर कुछ समझाती.. ये भी कि वो अब बड़ा भाई बनने वाला है इसलिए उसे अपनी शैतानियाँ कम करनी चाहिए । अब जब वो अस्पताल के बिस्तर पर अपनी माँ और नयी बहन के साथ था तब भी उसके सवाल वैसे ही जारी रहे । पर थोड़ी समझदारी भी दिख रही थी.. वो सीधा बैठा था, और हलके से शोटी बेबी को सहला रहा था । अरुणिमा की आँखें एक बार फिर राजेश को ढूँढने लगी । बाहर पूछवाया तो पता चला कि बस आ ही रहे हैं। अब वो थोड़ा असहज होने लगी थी.. थोड़ा अजीब लगने लगा था उसे । उत्कर्ष के जन्म के समय तो वो मेरे साथ खड़े थे, इस बार क्यूँ नहीं ! वो इस सच से वाकिफ़ थी कि हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा बेटी के जन्म पर अब भी खुश नहीं होता । बड़े परिवार शायद ये ख़ुशी ऊपरी दिखावे की तरह दिखाते हों.. पर फ़र्क तो किया जाता है । लेकिन राजेश ? उसने फिर सोचा.. नहीं नहीं, राजेश ऐसे नहीं है । हाँ, हर बार मेरी बेटी की मांग वाली बात वो आराम से सुनते.. मुस्कुराते भी ... पर अपना पक्ष कभी साफ़ नहीं रखा । उसने फिर खुद को टोका कि नहीं वो गलत सोच रही है.. ऐसा नहीं हो सकता । राजेश भी बहुत खुश होंगे और मुझे खुश देखकर तो और भी ज़्यादा ।


वो अब फिर अपनी बेटी को निहारने लगी.. शांत, सारी उलझनों से दूर । अरुणिमा ने अपने जीवन के संघर्षों के बारे में सोचते हुए उसके माथे पर अपना हाथ फेरा और कहा कि मैं तुम्हें सारी उलझनों से दूर रखूंगी, मेरी बेटी ।
एक बेटी को जन्म देने का ख़्वाब उसने उस वक़्त से देख रहा था जब वो कुँवारी थी.. उस वक़्त अपनी माँ से इस बारे में चर्चा कर वो खूब हंसती । माँ भी खूब समझती थी कि उसकी बेटी शादी के बाद एक बेटी को क्यूँ जन्म देना चाहती है । माँ कहती, "मुझे पता है, तुम्हारी जो ख़्वाहिशें अधूरी रह गयी हैं..तुम उन सबको अपनी बेटी के मार्फ़त पूरा करना चाहती हो"। अरुणिमा भी मुस्कुराते हुए कहती, "हाँ, माँ । एक लड़की होकर बचपन से लेकर आजतक जिन भी चीज़ों के लिए तरसी हूँ.. मैं अपनी बेटी को वो सबकुछ देना चाहती हूँ.. ख़ासतौर पर... नए-सुन्दर कपड़े"। अरुणिमा ये सब याद करते हुए अब मुस्कुरा रही थी.. पर आँखों में समंदर भर आया था और गले में एक बड़ा पत्थर महसूस हो रहा था । उसने एक बार फिर अपनी ऊँगली बेटी की मुट्ठी में फंसाई, मानो सारी खुशियों की चाभी इन्हीं हाथों में हो ।


थोड़ी ही देर में राजेश कमरे के अन्दर आया । अरुणिमा ने जैसा सोचा था उस तरह से नहीं, बल्कि बिल्कुल सामान्य भाव से । राजेश पास आकर बैठा.. अरुणिमा से उसकी तबियत पूछी । बेटी की ओर देखा.. हलके से मुस्कुराया.. अरुणिमा अबतक शांत ही थी। अब राजेश ने अपना हाथ बेटी के सिर पर फेरा.. तो मानो अरुणिमा की जान में जान आ गयी हो । अब वो थोड़ा मुस्कुराई, पर फिर भी राजेश का ये सामान्य व्यवहार नहीं था, ये औपचारिकता पूरी करने जैसा था । हालांकि उन्हें अपनी भावनाएं ज़ाहिर करने में थोड़ी दिक्कत होती है.. पर इस वक़्त एक बार अरुणिमा को गले लगाना तो उनका फ़र्ज़ बनता था । अगर वो बेहद ख़ुश होते तो ऐसा ज़रूर करते.. पहले भी किया है.. कोई काम पूरा होने पर.. उत्कर्ष का जन्म होने पर ।


अरुणिमा से रहा नहीं गया, उसने पूछ लिया "तुम ख़ुश नहीं हो?" राजेश ने हाथों से शायद अपनी आँखें छुपाते हुए.. नज़रें नीची करते हुए "हूँ..खुश हूँ.." कहा । अरुणिमा ने एक लम्बी सांस ली, जैसे उसे एक ऊँची चढ़ाई चढ़नी हो..एक संघर्ष और जीना हो..और फिर मुस्कुरायी.. अपनी ऊँगली बेटी की मुट्ठी में फँसायी और एक हल्की नींद के लिए अपनी आंखें बंद की ... जैसे दोनों माँ-बेटी को कुछ प्लानिंग करनी हो ।
.............


(इस पोस्ट का श्रेय मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक और हमेशा ही प्रोत्साहित करने वाले अनुज जी को जाता है, जिन्होंने हमेशा ही मुझे गद्य लिखने को प्रेरित किया । साथ ही, इस टाइटल को भी सुझाया था और एक सीरीज़ लिखने को कही थी ।
तो आप सब के लिए "युवती" का यह पहला भाग प्रस्तुत है। इस सीरीज़ के अंतर्गत स्त्री के जीवन के विभिन्न पड़ावों पर लिखने की कोशिश करुँगी ।)

2 comments:

  1. इस खूबसूरत कहानी शृंखला की खूबसूरत शुरुआत पर टिप्पणी करना चाहता था लेकिन आँचल के उल्लेख किये जाने ने मेरी उंगलियाँ उँगलियाँ बांध दी हैं। जब आँचल के लेख देखता था हमेशा लगता था की युवतियों/स्त्रियों की भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ आँचल न्याय कर सकती है आज वही समाने देख रहा हूँ। सिरीज़ है तो अगली कहानियों में टिप्पणी अवश्य करूंगा। आँचल गद्य बहुत अच्छा लिखती है। बधाई और शुभकामनाऐं।

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  2. अरुणिमा ने एक लम्बी सांस ली, जैसे उसे एक ऊँची चढ़ाई चढ़नी हो..एक संघर्ष और जीना हो | बहुत बहुत बढ़िया |

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