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Tuesday, December 24, 2013

हवा और शज़र...

इक शज़र की दोस्ती हुई हवा के रुख़ से,
रोज़ मिलना तय हुआ एक-दूसरे के वजूद से..

हवा थी बड़ी चंचल,
इधर से उधर भागती फिरती ।
शज़र था बड़ा स्थिर,
शांत और सहनशील ।

दोनों मिलते..
लिपटते..
झूमते..
बिखरते..
संभलते..
और फिर खिलते ।

हवा की अँगड़ाई थी,
शज़र के दिल का चैन ।
जो एक दिन रूठ कर ,
शांत रही थी दिनभर..
हो गया था शज़र बड़ा बेचैन ।
आधी रात जब आयी,
हवा अपना गुस्सा लेकर..
गुज़री थी शज़र के सामने,
आंधी बनकर ।

अब शज़र नहीं करता
हवा को नाराज़ ।
जब आती है हवा संवरकर
तो लगाता है उसे
प्यार से आवाज़ ।
चुपचाप लेता है
हवा को अपनी पनाहों में..
पत्ते-फूल सब मुस्कुराते है,
तब बागानों में ।

अब हवा भी लहराती है अपना आँचल
फिज़ाओं में..
और शज़र भी बरसाता है अपनी छाँव
जहानों में..

हवा का आँचल और शज़र की छाँव..
मशहूर है शहर में..
अब होती है हर शाम,
"आँचल की छाँव" !!!

Friday, December 20, 2013

शायद, ग़ज़ल बन गयी है ये...

तुमने कहा था एक बार, दूर चली जाओ मुझसे..
अब तुम्हारे साथ रहने की ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

तुमने कहा था, फुरसत में कभी मिलेंगे तो कर लेंगे दो बातें..
अब मेरी बेसाख्ता दिल-ए-इज़हार करने की ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

तुम्हें होगी ज़माने की परवाह हर वक़्त..
मेरा सिर्फ तुम्हारी परवाह करना, ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

अपनी डायरी में तुम्हारा नाम लिख-लिखकर मिटाना..
तुम्हें महसूस करने की बेवजह सी ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

हमें कहाँ मालूम था कि तुम मुस्तक़बिल-ए-नारसा* हो..
मुझ जैसी शून्य का
तुम जैसे क्षितिज की ख़्वाहिश करने की ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

ख़ामोश-से,अनकहे, अनसुलझे बातों को पिरोकर ग़ज़ल- ख़्वानी^ कहना..
अब खामखाँ अपनी बात कहने की ये आदत जाते-जाते जायेगी ।

*भविष्य, जिस तक पहुंचा ना जा सके
^ग़ज़ल की प्रस्तुति

(कुछ गलतियाँ हुईं हो तो बड़े लोग गुस्ताख़ी समझकर माफ़ करेंगे)

Tuesday, December 17, 2013

अकेलापन है कि आवारापन !

अकेलापन हमसे क्या-क्या करवा देता है...जो चाहते है हम वो भी और जो ना चाहते है वो भी...

वैसे ये अकेलापन खुद तो इतना अकेला है लेकिन, हमारे पास आकर हमें भी अकेला कर जाता है..मतलब हमारे साथ आकर रहने लगता है, तो इस हिसाब से अकेले कहाँ हुए हम !!

किसी ने सुझाव दिया कि अकेलेपन से इतने ही परेशान हो तो दुकेले हो जाओ.. एक से भले दो। लेकिन अकेलापन तो सबके भीतर है..और इस हिसाब से दुकेले वाला दूसरा इंसान भी अकेलेपन से ग्रसित हुआ तब तो दो लोगों के अकेलेपन मिलकर और ज़्यादा अकेले नहीं हो जायेंगे !!

फिर किसी ने सुझाया, अकेलापन भीतर है.. इसलिए इसको बाहर निकाल फेंको.. अपने से दूर कर दो। अमां यार, अब इस नज़रिये से भी तो देखो कि "जो जितना दूर है, वही उतना पास है" - इस हिसाब से तो अकेलापन पास हुआ ना !!!

एक बहुत ही ख़ास मित्र ने कहा, "अकेलेपन को हम इधर-उधर की जितनी चीजों से भरते है, यह उतना और बड़ा होता जाता है" -- यार, अकेलापन है कि गुल्लक है..मैं पूछती हूँ इस गुल्लक से गुडलक निकलेगा क्या !!

अकेलापन अकेलापन अकेलापन...साला अकेलापन ना हुआ आवारापन हो गया। कहते है, "खाली दिमाग शैतान का घर होता है" ...और अगर दिल खाली होता हो तो किसका घर होता है !!!

ऐसा करते है, इस अकेलेपन को ही अकेला कर देते है..जब ख़ुद अकेला रहेगा ना, तब अक्ल ठिकाने आएगी इसके..तब इसे समझ आएगा अकेलेपन का बोझ...

सोचा था 'अकेलेपन' पर कुछ बहुत सीरियस टाइप लिखूंगी..लेकिन ये कुछ funny जैसा हो गया... यकीन मानिए शुरुआत भी सीरियस टाइप ही लिखने की थी...कोशिश भी पूरी थी... पहले की दो लाइने अकेलेपन के आक्रमण और आघात का ही परिणाम है..

देखा ना, अकेलापन क्या-क्या करवा देता है..पोस्ट की शुरुआत से मैं यही तो बोलने की कोशिश कर रही हूँ.. अब इस पोस्ट से आप कुछ समझ पाए तो मेरे लिए दुआ कीजियेगा... लेकिन, अगर कहीं पढने के बाद आपको किसी मनोचिकित्सक की ज़रुरत महसूस हो तो भी मेरे लिए दुआ कीजियेगा..क्यूंकि यही हाल होता है अकेलेपन से..
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Friday, December 13, 2013

डायरी का एक पन्ना...

अपनी डायरी में कुछ लिखना चाहती हूँ..
तुम्हें बहुत कुछ बताना चाहती हूँ...
कोशिशें नाकाम हो गयी,
मैं भी थक गयी हूँ अब..
कुछ समझ नहीं आ रहा..
क्या कहूं..कैसे लिखूँ..कैसे बताऊँ !!!
बस,
अपनी डायरी में कुछ लिखना चाहती हूँ ।

सोचती हूँ,
डायरी का ऐसा एक पन्ना तो हो,
जिसपर क्रॉस का निशान करके
उसे मरोड़कर डस्टबिन में ना फेंक पाऊं..
जिसपर कुछ ऐसा लिख जाऊं,
जो संभाले रख सकूं अपने पास सालों-साल...
मैं भी तुम्हारी ज़िन्दगी का
ऐसा ही एक 'पन्ना' होना चाहती हूँ ।

लेकिन मैं शायद वो पन्ना थी,
जिसपर तुमने रफ़ का कुछ काम कर..
पढ़ा, समझा और फिर फाड़कर फेंक दिया था ।
अब इस फटे हुए पन्ने के पास शब्दों की कमी-सी है
बस ख़्यालो और यादों की नमी-सी है...
हर्फ़े रूठ गयी.. तुम जुदा हो गए...

बस डायरी का एक पन्ना अब भी खाली है...
जिसपर कुछ लिखना चाहती हूँ...!