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Tuesday, June 17, 2014

कुंठित पौरुष

एक स्त्री की देह है ये
और तुम्हारे लिए
बस एक खिलौना भर
अपनी उँगलियों को ऐसे
फिराते हो
जैसे उसकी देह हो
तुम्हारी संपत्ति
पूछा कभी उससे
जब वो बात करती है
तुमसे कुछ कहती है
तब तुम्हारा उसे किसी
भी जगह हाथ लगा जाना
कैसा लगता है
तुम्हारे शब्दों में कहूं तो
तुम स्त्री को किसी स्विच
की तरह दबाकर
"ऑन" करना चाहते हो

होगी तुम्हारे लिए
ये तुम्हारी सख्त़ ज़रुरत
लेकिन एक स्त्री के लिये
ये सम्पूर्णता का विस्तार है
तुमसे जुड़ने का त्यौहार है
पर तुम,
तुम्हें तो स्त्री की क्वालिटी
उसकी 'वर्जिनिटी' में
दिखती है
इस 'वर्जिनिटी' पर वार करके
तुम अपनी पौरुषता का दावा
पेश करते हो
तुम्हारे लिए तुम्हारा ये
स्वघोषित ईनाम
तुम्हें मर्दों की
फूहड़ता वाली श्रेणी
में मिलाता है
'वर्जिनिटी' पाकर
ख़ुद को विजेता समझने वाले
तुम अन्दर से सड़े-गले हो
कितने लाचार हो तुम
तुम्हारा पौरुष भी
एक स्त्री की देह पर निर्भर है
तुम्हारी मर्दानगी भी शेष
नहीं है तुममें
अन्दर से खोखले
बाहर से बीमार नर हो तुम

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5 comments:

  1. तुमने ऐसा टॉपिक छेड़ दिया है जिसके के बारे में राजेन्द्र यादव जी कहा करते थे कि इस पर और लिखे जाने की जरूरत है। वास्तव में अपनी तमाम आलोचनाओं के बावजूद उनका पक्ष सही था। इस कविता को पढ़ कर इच्छा हो रही है इसका एक और पक्ष लिखूं लेकिन यदि अभी लिखूंगा तो यह बेईमानी होगी। लिखूंगा जरूर कभी। इस टॉपिक पर निरंतर गद्य और पद्य लिखे जाने की जरूरत है बहस की हद तक जाकर, हद से बाहर जाकर। तुम इतनी ईमानदारी और श्रेष्ठता से इस कविता में बोल्ड्नेस में बहुत आगे चली गयीं देख कर अच्छा लगा। इतना आगे जाये बिना स्त्री मानस के देह से जुड़ाव को नहीं लिखा जा सकता था। चाहूंगा कि इसी तरह धीरे धीरे गुत्थियां खोलते खुद से उलझते कभी तुम्हारा गद्य भी देखूं माने कहानी या लेख बल्कि दोनों। और अब मुझे लग रहा है कि यहाँ टिप्पणी करने की जगह मैं ही लेख लिखने बैठ गया। मुख्तसर करता हूँ यह कह कर की इस बार सरलता की अपनी विशेषता में आँचल ने नया अद्ध्याय जोड़ा है जो पढ़ने में भी सुखद है अनुभव करने में भी और इसलिए भी कि आगे इसी तरह वर्जनाएं तोड़ती रचनाओं की अपेक्षा की जा सकती है। आँचल को दिल से बधाई

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  2. ये आपके पुराने हर रंग से बिलकुल मुक़्तलिफ है। कुछ हिचक से कहूँ तो पहली बार पढ़कर किसी और का है। केवल कविता का विषय नहीं , लिखने का कस हुआ ढंग, शब्दों का बेहतरीन प्रयोग आपके लेखन में आई maturity का गवाह है। यह विषय एक कमेंट बॉक्स के लिए बहुत कम है, इसलिए बिना उसके कई पहलुओं आर टिप्पणी किया आपको इस नए अंदाज़ के लिए बधाई देना चाहूँगा। आशा है कलम इसी तरह पैनी बनी रहेगी।

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  3. खोखले पौरुषिक दंभ पर करारी चोट करती हुई एक उम्दा कविता। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।

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  4. मुझे बेहद ख़ुशी है कि इस पोस्ट पर अबतक सिर्फ़ पुरुषों के कमेंट आये हैं । इस कविता को समझने और इसका सम्मान करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद । तहे दिल से शुक्रिया आपसब का ।

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  5. Bravo. अब तो आपकी लेखनी में आमूल-चूल परिवर्तन आ चुका है | आपके ब्लॉग और कविताओं को पढ़कर सोचते हैं की काश हम आपका 10 परसेंट भी लिख पाते | :(

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