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Sunday, March 30, 2014

लाइब्रेरी की मुलाक़ात !

किताबों की चहारदीवारी के बीच,
कविताओं वाले सेक्शन में..
एक ही किताब पर दोनों ने साथ हाथ रखा था..
फिर हम दोनों की नज़रों ने,
एक दूसरे को छुआ था..
ये थी हमारी पहली मुलाक़ात..
किताबों की चहारदीवारी के बीच,
लाइब्रेरी में ।

कविताएं पढ़ते-पढ़ते..
नजदीकियाँ बढती गयीं..
जैसे कविता की दो पंक्ति
एक साथ जुड़ती रहीं ।

कौमा, फुल स्टॉप, एक्सक्लामेशन सा
हमारा रिश्ता बढ़ता गया..
किताब की चहारदीवारी के बीच
कितना कुछ सिमटता-घटता चला गया ।

ऐसा हो, किसी दिन हम-तुम भी,
किसी कविता की किताब हो जाएँ..
ऐसी ही किसी चहारदीवारी में सुकून से रह पाएँ..
बस, समीक्षा और विश्लेषण से बच जाएँ..
ऐसे दुश्मनों को हम पहचान में भी ना आएँ !

ये थी हमारी पहली मुलाक़ात..
किताबों की चहारदीवारी के बीच,
लाइब्रेरी में ।

.....

3 comments:

  1. सच है आँचल की ईमानदार अभिव्यक्तियों से सीख कर मुझे खुद स्त्रियों की ईमानदार अभिव्यक्ति उकेरने में स्वतंत्रता मिली इसी ब्लॉग पर मैने एक पोस्ट पढ़ते जाना था कि युवतियों की बोल्ड अभिव्यक्ति भी शालीन हो सकती है। इस कविता में इतनी सच सरल और वास्तविक अभिव्यक्ति है कि जीवन में कम से कम एक बार हर व्यक्ति इस सरलता से प्रेम में पड़ना चाहेगा। बहुत खूबसूरत मंशा लिये एक सुंदर रचना है। आँचल को ढेर सी बधाई .....:)

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  2. आपने प्रेम की नैसर्गिक व्याख्या की है, और बहुत ही खूबसूरती से से इसे लिखा है | इस पोस्ट में रविश सर कहीं से दिखाई नहीं नहीं देते, सिर्फ आँचल हैं, और आँचल की कविता की ठंढी छाँव |

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  3. ek dum hakikat ko bayan kiya hai aapne..
    your most welcome to my blog.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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