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Tuesday, February 18, 2014

आँखों-देखी.. कानों-सुनी

पुस्तक मेले से वापस आ रही हूँ.. मेट्रो ले ली है, पर भीड़ इतनी ज्यादा है कि सीट पर बैठने की जगह नहीं और अगर गलती से जगह मिल भी गयी तो हम जैसे अति-इमोशनल इंसान को कोई ना कोई ज़रूरतमंद दिख ही जाएगा.. और हम अपनी सीट दान कर देंगे । ख़ैर, मेट्रो में जब अनाउंसमेंट हो रही हो - "कृपया मेट्रो की फ़र्श पर ना बैठे"... यकीन मानिए उस वक़्त मेट्रो की फ़र्श पर बैठने का अपना अलग ही मज़ा है :P
वो भी ड्राईवर वाले खोपचे के ठीक बगल में। तो मैंने भी आलथी-पालथी वहीँ लगा ली है । अभी बैग से आज के पुस्तकों की पड़ताल करने ही वाली थी कि मेरे दोनों ओर बैठी लडकियों की फ़ोन पर बातें करती आवाजें मुझे परेशान करने लगी हैं.. (अरे ! ऐसे कैसे परेशान करने लगी, लड़कियां बात कर रही है, किसी ख़ास से.. ये परेशानी वाली बात हो ही नहीं सकती ना !)
मेरे बायीं ओर वाली तो बहुत ज़्यादा परेशान है,फ़ोन के दूसरी साइड वाले से बात करना भी नहीं चाह रही है और बात किये भी जा रही है । अब आईये दायीं ओर वाली पे, इसने अपराधबोध के साथ किसी को फ़ोन लगाया और कहने लगी, "ओफ्फो, मेरे बैग में पास्ता था.. हमने खाया भी नहीं"। थोड़ी-सी ही बात हुई पर प्यार झलक रहा था :) (बायीं ओर वाली की रफ़्तार अभी भी वैसी ही है)

सब किसी से परेशान है.. कोई ख़ुद से, कोई किसी और से । और बीच में बैठी मैं.. यूँ तो परेशानियां मेरे पास भी कम नहीं, लेकिन फ़िलहाल.. भयानक कमर दर्द, सिर दर्द और भयंकर भूख से परेशान हूँ । गाने भी नहीं सुन सकती, क्यूंकि फ़ोन की बैटरी ख़त्म होने वाली है । ख़ैर, कोई बात नहीं! इन दोनों के सामने मेरी परेशानी ज़्यादा मायने नहीं रखती ।

थोड़ी देर में दायीं ओर वाली उतर गयी.. अब बच गयी मैं और मेरी बायीं ओर वाली । (बहुत पर्सनल बातें हो रही है..लिख नहीं सकती । गलती से लड़की ने अगर कहीं पढ़ लिया, तो मुझपर मानहानि का मुकदमा हो जाएगा.. *बचाओ*)
४५ मिनट हो चुके हैं.. पर ये बायीं ओर वाली अभी तक बात ही नहीं करना चाह रही है। मुझे बहुत दुःख हो रहा है । अब उनकी बात ख़त्म हो गयी है..बिना किसी नतीजे के.. या शायद कल मिलने का प्लान है । मेरा भी स्टेशन आने वाला है.. सोच रही हूँ, मैं तो परेशान हूँ ही.. बायीं ओर वाली की परेशानी थोड़ी कम कर जाऊं.. तो मैंने उठते हुए कह ही दिया, "ज्यादा टेंशन ना लो.. सब ठीक हो जाएगा.. स्माइल करो" । बायीं ओर वाली ने ऊपर नज़र उठाके देखा और अब वो हल्का सा मुस्कुरा दी है ।

मेट्रो में अनाउंसमेंट होने लगी, "अगला स्टेशन फलना-ढिमकाना है । दरवाज़े बायीं तरफ खुलेंगे.. कृपया सावधानी से उतरें" ।
सावधानी से उतर गयी हूँ.. घर जा रही हूँ.. ख़ाली पेट और भारी दिमाग के साथ...

10 comments:

  1. उनके दर्द में भी प्यार था , बहुत सुन्दर :)

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  2. कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
    कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

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  3. हम जैसे अति-इमोशनल इंसान को कोई ना कोई ज़रूरतमंद दिख ही जाएगा.. और हम अपनी सीट दान कर देंगे - :)
    मेट्रो में अनाउंसमेंट होने लगी, "अगला स्टेशन फलना-ढिमकाना है -:P

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  4. इतनी भूख में भी दूसरे की बात सुनने की भूख आँचल टिपिकल मेट्रो यात्री है ....:)

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  5. पोस्ट पढ़कर स्पष्ट हो रहा है, की हिंदी पर अच्छी पकड़ है आपकी,
    आपके पोस्ट में रविश सर ndtv की झलक भी दिखाई देती है |

    आपका फैन हो गया मैम | :) :)

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    1. उन्हीं को पढ़ते-पढ़ते लिखना सीखा है। शुक्रिया आपका ! :)

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    2. जी मुझे रविश सर के हिंदी के सधे हुए शब्द बहुत पसंद आते हैं,
      आपके पोस्ट पर भी कुछ ऐसा ही पाते हैं हम, इसलिए रविश सर के पोस्ट को पढने के बाद एक बार aanchalkiaashayein.blogspot.in पर ज़रूर जाते हैं, यह देखने के लिए की कोई नया पोस्ट किया हो आपने |
      फेसबुक और ट्विटर पर भी अकाउंट है क्या आपका ?
      क्या आपको वहां फॉलो कर सकते हैं ?

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    3. ब्लॉग लिखने की बड़ी सी गुस्ताखी मैंने भी की है,
      जिंदगी में कुछ नया करते रहना चाहते हैं इसलिए,
      अगर कभी भी फुर्सत मिले तो कृपया पढ़िएगा,
      पता है
      sohanlalpandit.blogspot.in

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  6. मैडम, आप "आप" से हैं क्या ? आपको कभी हिचकी आती है मैडम ?

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  7. हेवी लिखने लगी हो ⊙﹏⊙

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