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Tuesday, December 2, 2014

बहुत आरज़ू थी गली की तेरी...

पहली बार ऐसा हुआ है
कि  पहले  'उन्वान'* लिखा है
फिर नज़्म को सजाना चाहा है
वो शायद इसलिए कि
तुम्हारे-मेरे साथ का आख़िरी
मकाम यही होना है
एहसास ये  है
कि तुम्हें आगे बढ़ जाना है
और मुझे तुम्हें खो देना है
अब किसी और बात का
न इसरार^ होगा ना कोई तवक़्क़ो होगी
अब तुम्हारे दर पर ये मेरे कुछ 
आख़िरी ख़तों की दस्तक होगी ।

मेरी रूह ने तुममें
कोई अपना महसूस किया था
उस पागल ने तुम्हें
बेइंतहा अपनापन दिया था
तुम्हारे नाम को भी
अपने नाम के साथ सजाया था

तुम भी इक दफ़े
आये थे बहार की तरह खिलते हुए
मुझ डाली को
अपनी बाहों में समेटने के लिए
उस शाम जब
तुमसे शर्माने का नज़ारा होता था
तभी मेरा
ख़ुद से ख़ुद ही में सिमटना होता था
वो तुम्हारे साथ
मेरी रूह का आख़िरी सुक़ून था ।

न जाने हवाओं से कहकर
तुम्हें कितने पैग़ाम पहुँचाये फ़िर
सारे मौसमों को
तुम्हारे घर का पता भी बताया था
न जाने क्या क्या
उन ख़तों में लिखकर भेजा है मैंने तुम्हें
कोई हर्फ़ ना लिखकर भी
बहुत कुछ कहा है तुम्हें
मैं कहते कहते थक गयी
तुम चुप ही रहे
मैंने तुमसे चुप रहने की आदत जब सीख ली
तुम फिर भी ख़ामोश ही रहे ।

अब तुम्हारी नज़्मों में
जो ख़्याल उड़ता है उनमें
अपनी शक्ल ढूंढती हूँ मैं
तुम्हें पास लाने का ख़्वाब
फिर सताने लगता है
तुम्हें भूलने का इरादा
ज़रा सा डगमगाने लगता है
पर तुम बेफ़िक्र रहना
मेरे ख़त तुम्हें अब परेशान नहीं करेंगे
आख़िरी तोहफ़ा
बग़ैर किसी ख़त के भेजा है तुम्हें ।
-----------
*शीर्षक
^ज़ोर देना या ज़िद करना

6 comments:

  1. अब तुम्हारी नज़्मों में
    जो ख़्याल उड़ता है उनमें
    अपनी शक्ल ढूंढती हूँ मैं


    बहुत खूब

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  2. "एहसास ये है
    कि तुम्हें आगे बढ़ जाना है
    और मुझे तुम्हें खो देना है"

    Loved it

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  3. "अब तुम्हारी नज़्मों में
    जो ख़्याल उड़ता है उनमें
    अपनी शक्ल ढूंढती हूँ मैं
    तुम्हें पास लाने का ख़्वाब
    फिर सताने लगता है
    तुम्हें भूलने का इरादा
    ज़रा सा डगमगाने लगता है
    पर तुम बेफ़िक्र रहना
    मेरे ख़त तुम्हें अब परेशान नहीं करेंगे
    आख़िरी तोहफ़ा
    बग़ैर किसी ख़त के भेजा है तुम्हें ।"

    Simply awesome

    ReplyDelete