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Friday, December 13, 2013

डायरी का एक पन्ना...

अपनी डायरी में कुछ लिखना चाहती हूँ..
तुम्हें बहुत कुछ बताना चाहती हूँ...
कोशिशें नाकाम हो गयी,
मैं भी थक गयी हूँ अब..
कुछ समझ नहीं आ रहा..
क्या कहूं..कैसे लिखूँ..कैसे बताऊँ !!!
बस,
अपनी डायरी में कुछ लिखना चाहती हूँ ।

सोचती हूँ,
डायरी का ऐसा एक पन्ना तो हो,
जिसपर क्रॉस का निशान करके
उसे मरोड़कर डस्टबिन में ना फेंक पाऊं..
जिसपर कुछ ऐसा लिख जाऊं,
जो संभाले रख सकूं अपने पास सालों-साल...
मैं भी तुम्हारी ज़िन्दगी का
ऐसा ही एक 'पन्ना' होना चाहती हूँ ।

लेकिन मैं शायद वो पन्ना थी,
जिसपर तुमने रफ़ का कुछ काम कर..
पढ़ा, समझा और फिर फाड़कर फेंक दिया था ।
अब इस फटे हुए पन्ने के पास शब्दों की कमी-सी है
बस ख़्यालो और यादों की नमी-सी है...
हर्फ़े रूठ गयी.. तुम जुदा हो गए...

बस डायरी का एक पन्ना अब भी खाली है...
जिसपर कुछ लिखना चाहती हूँ...!

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