Pageviews last month

Friday, May 16, 2014

बकबक - ३

कोई नहीं समझता आपकी बात को.. आपकी भावनाओं की कद्र भी नहीं करता कोई.. जिसके लिए भावनाएं है, वो ही नहीं समझता आपकी बात को । उनके सर में दर्द हो तो हमें तकलीफ़ होती है, हम चाहे तबियत की किसी भी हालत में हो, उनसे कोई उम्मीद नहीं कर सकते । हमारी गलती यही है कि हम जिसको अपनी सोच में रखते है, वो कभी हमारे मन का कुछ कहे..बस ये उम्मीद लगा ली । जैसे ही उन्हें सामने देखते है, लगता है कितनी ज़ोर से गले लग जाएँ.. सब बातें कह जाएँ । कभी-कभी हम दिल की वजह से बहुत मजबूर हो जाते है । क्यूँ किसी को इतना अपना समझ बैठते है ? क्यूँ किसी को ख़ुद में शामिल कर लेते है ? ये मालूम होते हुए भी कि सामने वाला ना तो आपकी बात समझेगा.. और अगर समझ भी ले तो अपने सुरक्षा घेरे से कभी बाहर नहीं आएगा । सब को अपनी परवाह होती है ..कोई किसी की परवाह नहीं करता । अंत में, हार हमारे दिल की ही होती है.. हम ख़ुद से हार जाते है । और जब कोई नहीं सुनता, कोई नहीं समझता तो ऐसे ही बकबका देते है अपनी डायरी में या ब्लॉग पर ।
तबियत ज़्यादा खराब है..पिछली पूरी रात सो नहीं पाई थी.. आज दिन भर सोती रही.. रात को भी बहुत सोना है । भारत जीत गया है आज.. पर मैं ख़ुद से ही हार गयी हूँ ।

No comments:

Post a Comment