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Monday, January 20, 2014

पीड़ा...

क्या होती होगी पीड़ा उस लड़की की,
जो घर की देहरी पारकर
जाती है पैसे कमाने
हम और आप, जिस काम को
संबोधन देते है 'ग़लत काम' का ।
रोज़ उसी ताम-झाम के साथ,
घर से निकलकर पैसे कमाना
और फिर, वापस जूठी देह से..
जूठे हाथ-पैर से..
मुस्कुराते हुए वापस आना ।

क्या होती होगी मजबूरी उस लड़की की,
जो रोज़ निकलती है घर से
किसी सामान की तरह ।
अपने छोटे भाई-बहनों की स्कूल फ़ीस के लिए..
अपने एक कमरे वाले मकान के किराये के लिए..
अपनी माँ की फटी साड़ी को नयी साड़ी में बदलने के लिए..
अपने घर में रोज़ की दो वक़्त की रोटी के लिए..

नहीं समझेंगे हम और आप,
उस लड़की की पीड़ा को ।
हम और आप, तो देखते है उसे गलत नज़रो से..
आपस में कहते है, लड़की सही नहीं है ।

कभी समझा है, क्या होती होगी पीड़ा उस लड़की की !
शायद हमने कभी पूछा ही नहीं !
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5 comments:

  1. पीड़ा वास्तविक है पर वैसे ही सालती है जैसे पहली बार महसूस हुई थी beautiful AAnchal...

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  2. क्या होती होगी मजबूरी उस लड़की की,
    जो रोज़ निकलती है घर से
    किसी सामान की तरह ।
    अपने छोटे भाई-बहनों की स्कूल फ़ीस के लिए..
    अपने एक कमरे वाले मकान के किराये के लिए..
    अपनी माँ की फटी साड़ी को नयी साड़ी में बदलने के लिए..
    अपने घर में रोज़ की दो वक़्त की रोटी के लिए..

    वाकई मैंने कभी नहीं समझा उस पीड़ा को लेकिन तेरी इन चाँद लाईनों ने महसूस करा दी पीड़ा ...आँखे नम हैं ...बहुत उम्दा

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  3. lekhan paina hote ja raha hai . Badhai !

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  4. kaun hai voo jisko itni peedaa hai..har dard ki dava hoti hai..

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