आज बूंदों से कर ली जी भर की बातें
जो कुछ कहना था तुमसे
कह दी वो सारी बातें
वो भी कुछ कहानी कहती रही
झूम कर बरसती रही
तड़प के गिरती.. बिलखती
कुछ कहती फिर हल्के से मुझे चूमती
कुछ दिनों पहले की बात है
अब्र का एक टुकड़ा भी
आसमान में तुम-सा
ख़ामोश और सहमा पड़ा था
कभी-कभी हल्का गरजता
बूंदों से कुछ कहता
बूँदें रूठकर रोती हुई
ज़मीं पर चली आती थी
अब्र बूंदों की बात नहीं समझ पाता
बूंदें अब्र की ख़ामोशी नहीं पढ़ पातीं
अब्र गरज कर आँखें दिखाता रहा
बूंदें चुपचाप बरसती रही
अब्र भी टूटा है आज
बिखर कर ज़मीं पर गिरा है आज
बूंदों की तड़प समझ पाए शायद !
अब ढूंढ रहा दर-बदर
बूंद को हर इक पहर
बेख्याली में ये एहसास तक नहीं
बूँद को ढूँढने में
अब्र अब ख़ुद बूँद हो चला है...
अब्र* - cloud
सच कहूँ तो एक शानदार कविता है अर्थ और भावों को एडिटिंग की कसौटी पर कसी हुई एक छाप छोड़ती है। स्थापित लेखकों वाली ठसक भी आँचल की अभिव्यक्ति में झलकी है। ............बधाई
ReplyDeleteअनुज भाई ने ट्विटर पर लिंक दिया तो एक खूबसूरत कविता पढने को मिली। उनका धन्यवाद! कविता की तारीफ़ शब्दों में कम और भावनाओं में अधिक संभव है जो यहाँ प्रदर्शित करना असम्भव है। लम्बे समय बाद इतनी भावप्रवण कविता पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लिखती रहिये, भावनाओं की यह वर्षा मत रोकिएग शायद हम से किसी सूखे ठूंठ में कोंपलें ही फुट आयें।
ReplyDeleteट्विटर अकाउंट क्यों बंद कर दिया आपने ?
ReplyDeletewaah!
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