कितना आसान है न
तुम्हारे लिए ये कहना कि
तुम जियो अपनी ख़ुद की
बनायी दुनिया में,
वो बंजर है
...मुझे जाने दो ।
कितना आसान है न
तुम्हारे जमात के लिए
हम जमातों की बेतरतीब
लेकिन नाज़ुक सी
भावनाओं के साथ खेलना
अपना वक़्त संवारना
और कहना कि
...मुझे जाने दो ।
तुम्हें क्या पता
वक़्त-बेवक़्त तुम्हारी मौजूदगी
की बारिश के लिए ही तो
मेरे ख़्वाबों की दुनिया बंजर है
और तुम मेरी इस प्यारी सी
दुनिया में रहना ही नहीं चाहते
बस दम भरते रहते हो
...मुझे जाने दो ।
चले जाओ,
जाना ही है तो चले जाओ ।
मेरे शब्दों की तरह
मेरी दुनिया भी साधारण है
पर थोड़ी बेतरतीब है
तुम्हें कहाँ रास आएगी
अप-टू-डेट जो नहीं
साधारण है ... अति साधारण ।
अब ठहरने की बात ना ही करो
बाकी बातों की तरह
बाकी कहानियों की तरह
इस साधारण कविता को भी
अधूरी ही रहने देती हूँ
... मुझे जाने दो ।
...........
अच्छी कविता .......दर्द है सूनापन भी ............ सपने हारे हैं लेकिन टूटन नहीं इनमें ........ शब्दों की कशिश बरबस तैरने और डूबने का ऐहसास पाठक को अकेला छोड़ जाता है
ReplyDeleteकितना आसां है न
ReplyDeleteये कहना की मुझे कोई
फर्क नहीं पड़ता तेरे होने न होने से
मेरी तो जात बेवफा है मैं तो बस कह
देता हूँ ...
मुझे जाने दो
अधूरी पर मुक़म्मल रचना।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत।