कुछ लिखना था
डायरी का पन्ना पलटा
पुराने लिखे नज़्म पढ़े
कुछ नया लिखने की कोशिश की
और फिर डायरी बंद कर दी ।
फिर कुछ धुंधला सा याद आया
एक नया कोरा पन्ना निकाला
कलम पकड़ी
लम्बी साँस ली
पर चुप्पी ही रही ।
लगता है कलम इन दिनों
डायरी के पन्ने से
नाराज़ चल रही है ।
कहना चाहती है कितना कुछ
पर उसे देखकर
ख़ामोश हो रही है ।
इसकी शैतानी ऐसी है कि
लिखने के बहाने
हर बार पन्ने को
चूमकर निकल जाती है ।
लिखना चाहो तो
बस डॉट बनता है एक
ख़याल वहीँ दफ़न हुए जा रहे है
उफ्फ्फ़ की आवाज़ भी आ रही है
एक बूँद भी आकर
अभी गिरी है वहीँ ।
......
लगता है बहुत कुछ लिखा है फ़िर लगता है कुछ रह गया शायद फ़िर लगा जो रह गया लगता था वह भी यहीं है........... आँचल की सरलता अब चमत्कार करती है। अच्छा लेखन सार्थक लेखन .............बधाई
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