पिछले दिनों समन्वय में पहली बार गुलज़ार साब को लाइव सुनने का मौका मिला। कार्यक्रम में गुलज़ार साब ने 'नज़्म' पर इतनी नज़्में सुनायी कि नज़्म से जलन होने लगी। इसलिए मैं नज़्म की खोज-पड़ताल करने लगी... हाथ कुछ नहीं लगा.. बस ये बेतरतीब ख्य़ाल दिमाग में आ गए और कागज़ पर उतार दिया इन्हेँ । वैसे भी जब कोई बेहद पसंदीदा शायर नज़्म पर ऐसे रूमानी अंदाज़ में नज़्म लिखता है तो कुछ इसी तरह का ख्य़ाल आता है ~~
सुनो,
ये नज़्म कौन है...ज़रा बताना तो ! आजकल तुम्हारी डायरी में हर जगह नज़र आ रही है। अब फिर कोई शायरी बनाकर ये सवाल मत टाल देना।
आजकल रातों को मेरी नींद खुल जाती है, जब देखती हूँ तुम्हें डायरी और नज़्म के साथ। तुम्हारी डायरी, तुम्हारी नज़्म और तुम्हारी सिगरेट... ऊफ़ !
तुम भी जानबूझकर, मुस्कुरा कर मुझसे नज़रें चुरा लेते हो ना !! मुझे चिढ़ाने में तो तुम्हें मज़ा आता है।
जब देखो तब तीन स्त्रीलिंग से तो घिरे ही रहते हो - नज़्म, शायरी और कविता। इसलिए शायरों का नाम ख़राब है।
चलो, बहुत हो गया ! एक बार बता दो ना, ये नज़्म कौन है?
कहीं मेरा ही कोई नाम तो नहीं रखा तुमने !!
बोलो, मैं ही हूँ ना नज़्म !
...तुम्हारी नज़्म
सुनो,
ये नज़्म कौन है...ज़रा बताना तो ! आजकल तुम्हारी डायरी में हर जगह नज़र आ रही है। अब फिर कोई शायरी बनाकर ये सवाल मत टाल देना।
आजकल रातों को मेरी नींद खुल जाती है, जब देखती हूँ तुम्हें डायरी और नज़्म के साथ। तुम्हारी डायरी, तुम्हारी नज़्म और तुम्हारी सिगरेट... ऊफ़ !
तुम भी जानबूझकर, मुस्कुरा कर मुझसे नज़रें चुरा लेते हो ना !! मुझे चिढ़ाने में तो तुम्हें मज़ा आता है।
जब देखो तब तीन स्त्रीलिंग से तो घिरे ही रहते हो - नज़्म, शायरी और कविता। इसलिए शायरों का नाम ख़राब है।
चलो, बहुत हो गया ! एक बार बता दो ना, ये नज़्म कौन है?
कहीं मेरा ही कोई नाम तो नहीं रखा तुमने !!
बोलो, मैं ही हूँ ना नज़्म !
...तुम्हारी नज़्म