आज मौसम का मुझपर रसूख हुआ कुछ ऐसा...
छूकर सावन की बूंदों ने मुझे,
कुछ लिखने को कहा है खुद जैसा.. ।
बारिश के बोसे से याद आये ज़िन्दगी के कुछ बोसीदा वरक़*..
झूमा आसमान, गाने लगी हवाएं और
आहिस्ते से कुछ कहने लगा मेरे मन का हर्फ़ ।
इसकी हर एक बूँद के बेगुनाह लम्स** से खिल जाती हूँ मैं..
इसकी शरारत भरी संगत में और भी निखर जाती हूँ मैं ।
हर बार महसूस होता जैसे कोई हबीब^ पैग़ाम लेकर आया है ये..
पर जब मचल कर जाती हूँ इसकी ओर,
तो चुपचाप मुस्कुरा कर मुझे अपनी नज़रो में भर लेता है ये ।
इस मुएँ की साज़िश में हर बार फंस जाती हूँ मैं..
आह भरकर इसके सामने रहने को मजबूर हो जाती हूँ मैं ।
कुछ-कुछ बेतरतीब सा लिखने को कहा था इसने ऐसा..
मैंने भी शब्द ढाले है उसके ही अंदाज़े-बयाँ जैसा...।
आज मौसम का मुझपर रसूख हुआ कुछ ऐसा...
छूकर सावन की बूंदों ने मुझे,
कुछ लिखने को कहा है खुद जैसा.. ।
* बोसीदा- पुराना वरक़- पन्ना
**लम्स- स्पर्श
^ हबीब- प्यारा
छूकर सावन की बूंदों ने मुझे,
कुछ लिखने को कहा है खुद जैसा.. ।
बारिश के बोसे से याद आये ज़िन्दगी के कुछ बोसीदा वरक़*..
झूमा आसमान, गाने लगी हवाएं और
आहिस्ते से कुछ कहने लगा मेरे मन का हर्फ़ ।
इसकी हर एक बूँद के बेगुनाह लम्स** से खिल जाती हूँ मैं..
इसकी शरारत भरी संगत में और भी निखर जाती हूँ मैं ।
हर बार महसूस होता जैसे कोई हबीब^ पैग़ाम लेकर आया है ये..
पर जब मचल कर जाती हूँ इसकी ओर,
तो चुपचाप मुस्कुरा कर मुझे अपनी नज़रो में भर लेता है ये ।
इस मुएँ की साज़िश में हर बार फंस जाती हूँ मैं..
आह भरकर इसके सामने रहने को मजबूर हो जाती हूँ मैं ।
कुछ-कुछ बेतरतीब सा लिखने को कहा था इसने ऐसा..
मैंने भी शब्द ढाले है उसके ही अंदाज़े-बयाँ जैसा...।
आज मौसम का मुझपर रसूख हुआ कुछ ऐसा...
छूकर सावन की बूंदों ने मुझे,
कुछ लिखने को कहा है खुद जैसा.. ।
* बोसीदा- पुराना वरक़- पन्ना
**लम्स- स्पर्श
^ हबीब- प्यारा