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Wednesday, March 20, 2013

कवितायें


    "अपनी परिपक्वता को कभी मेरी मासूमियत की चाशनी में घोल के तो देखो...
     
     
    अपनी समझदारी को कभी मेरे पागलपन के साथ कैद करके तो देखो....
     
     
    मेरी बेवकूफाना, बचकाना, उत्साही हरकते सिर्फ तुम्हारे लिए है...
     
     
    अपनी रम्यता को कभी मेरे भोले दीवानेपन के साथ संजो कर तो देखो.... "
     
     
     
     
    " यूँ तो रात अकेली होती है...
    लेकिन इस रात में बातें अलबेली होती है.
    रात का सन्नाटा कई यादें साथ लाता है..
    कुछ पुरानी, कुछ नयी, कुछ अनकही, कुछ अनसुनी का एहसास लाता है.
    ये यादें दिल को कभी उदास करती है..
    तो कभी मेरे चेहरे पे एक मीठी सी मुस्कान छोड़ जाती है...
    आती रहो ऐसे ही रात तुम...करती रहो ढेर सारी बात तुम..
    उसी मासूमियत उसी रूमानियत के साथ,
    रात! तुम्हार इंतज़ार हर रोज़ होता है..."

Tuesday, March 19, 2013

यूँ ही......


  1. ऑटो वाले ने अचानक स्पीड स्लो कर दी,पीछे की सीट पे बैठे दोनों करीब गए..उसने झट से रीतू का हाथ पकड़ लिया..घर पहुँचने की जल्दी किसे थी !
  2. आज तुम्हे सपने में देखा..वहाँ भी मुझसे नज़रें चुरा रहे थे तुम..अच्छा! याद आया..अब तुम किसी और के 'नूर' हो ना...
  3. छत पे कपडे सुखाते वक़्त सौम्या ने चिढ़ते हुए कहा,"हमेशा हमलोगों को ही ब्रा तौलिये के नीचे क्यूँ सुखानी होती है"..माँ और दादी गेहूं पसारते हुए एक-दूसरे के चेहरे पे जवाब तलाशती रहती गयी
  4. वो जो पहली बारिश की बात बतायी थी तुमने...उसका क्या??
    अब तो ये बारह महीने आती है... बिल्कुल तुम्हारे याद की तरह... कभी भी......
  5. दिवाली की शाम उसके दुपट्टे में लगी आग ने पल भर में ही उसके पूरे शरीर को लपटों में ले लिया...आग लगी थी या....
  6. मैंने कहा था "साथ चलेंगे", लेकिन वो तो मुझे मसल कर आगे निकल गया और अपना जीवन खुशहाल कर लिया..साथ चलना क्या, उसने तो साथ दिया भी नहीं...
  7. माँ कहती थी.."आंसू पोंछ, हिम्मत कर, बनेगी तकदीर, मेहनत कर" -- बस ये सोंचते ही महिमा उठकर खड़ी हो गयी..आगे बढ़ने लगी...
  8. अटारी बॉर्डर से फैज़ के जिस्म ने लाहौर के लिए ट्रेन तो ले ली थी लेकिन उसका दिल भारत में ही रह गया था.. अमृतसर में दिखी उस 'हूर' के पास शायद... 
  9. कार से जैसे ही मीता के ससुर 'डोसे' का आर्डर देने उतरे..मीता ने झट से अपने पति को चूम लिया...दोनों घर की टेंशन दूर करने लगे...
  10. खफ़ा हो मुझसे...बेवफाई मैंने तो नहीं की थी...माँगा था तुम्हारा साथ...दुआएं हमने भी तो की थी...
  11. वो पूछते है मुझसे तबियत मेरी..क्या बताये की हमें तो साँस भी उनकी एक झलक से आती है...
  12. अपने हाथो की लकीरों को हर किसी को यूँ दिखाया नहीं करते...कोई ढूंढ लेगा अपना रास्ता इसमें....
  13. पहली बार दोनों ऑनलाइन मिले थे...लेकिन बुकफेयर में जब अचानक दोनों टकराए..... और अवनी ने हाथ मिलाया तो वो अवनी का हाथ ही नहीं छोड़ पाया...बस एकटक देखता रह गया... अवनी ने हाथ की ओर इशारा किया ...
  14. क्यूँ दूरियों का बेमतलब लुत्फ़ उठाते हो...
    कभी बेवजह फासले मिटाने की तो सोचो...
  15. वो मुझे इतना चाहने लगेगा मालूम न था.. एहसास हुआ होता तो नज़रें ही ना फेरती...
     

Sunday, March 17, 2013

एक नयी सुबह


....और आज एक नयी सुबह के साथ हम चल पड़े अपने जीवन के एक नए पन्ने को पलटने...अपने "नूतन-बाड़ी" की ओर...मैं,भैया और पापा....हालांकि जा हम रहे थे एक नए किराए के मकान में ही, लेकिन कई तरह के भाव मेरे मन में उमड़ रहे थे...यूँ तो दिल्ली जैसे शहर में मकान बदलना कपडे बदलने जैसा लगता है मुझे, लेकिन बात हमारे लिए तब खास हो जाती है जब हम सात साल से रह रहे एक मकान को छोड़ कर निकलते है. बहुत सारी यादें...ढेरो बातें लेकर :)
आज पुराना घर "ठन-ठन गोपाल" की तरह लग रहा था...मैंने जब पहली बार गुलाबजामुन बनाए थे,तो भाभी जी (Landlord) को ही खिलाया था..दिल्ली की मेरी माँ जैसी ही तो है वो..कोई नए स्टाइल की सब्जी बनायी या कुछ भी स्पेशल बनाया मैंने सबको खिलाया..वो भी हर बार उतने ही प्यार से काली दाल मुझे देती की "ये ले! तुझे पसंद है ना"...बहुत सारी बातें है, मेरे अभी तक के छोटे से जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा मैंने उस मकान में गुज़ारा..इसलिए शायद आज सुबह मेरी 'छोटी सी विदाई' भी हुई....

जब तक अपने घर पर थी..अपने शहर, अपने गाँव में थी..तब तक इस "किराए के मकान" का कोई अता-पता नहीं था..कुछ नहीं जानती थी..किरायेदार और मकानमालिक के बारे में..खैर दिल्ली ने ये भी सिखाया. हाँ तो अब हम नए डेरे पर है...अभी ये 'मकान' है, 'घर' बनाना है इसे..सजाना-संवारना है इसे..और मैं तो ये सोच कर ही खुश रहती हूँ की मेरे इतने सारे 'मायके' बनते जा रहे है...
अब सुबह-सुबह वो चेहरे नहीं दिखेंगे....मेरे सामने साल भर की मेरी जान सिल्क नहीं दिखेगी..वो मुझे मासी की आवाज़ भी नहीं लगाएगी..याद तो सबकी बहुत आएगी. और बदल गयी वो दूध की दूकान, बदल गए वो चेहरे, ग़र नहीं बदला कुछ तो वोही दिल्ली की हवा..सुबह की रौशनी और मैं.

और मेरे आदर्श रवीश कुमार के अनुसार वैशाली(क्षेत्र) अगर 'नगरवधू' है तो मेरे हिसाब से  द्वारका(क्षेत्र) राजकुमार.

(to be cont.)