"अपनी परिपक्वता को कभी मेरी मासूमियत की चाशनी में घोल के तो देखो...
अपनी समझदारी को कभी मेरे पागलपन के साथ कैद करके तो देखो....
मेरी बेवकूफाना, बचकाना, उत्साही हरकते सिर्फ तुम्हारे लिए है...
अपनी रम्यता को कभी मेरे भोले दीवानेपन के साथ संजो कर तो देखो....
"
"
यूँ तो रात अकेली होती है...
लेकिन इस रात में बातें अलबेली होती है.
रात का सन्नाटा कई यादें साथ लाता है..
कुछ पुरानी, कुछ नयी, कुछ अनकही, कुछ अनसुनी का एहसास लाता है.
ये यादें दिल को कभी उदास करती है..
तो कभी मेरे चेहरे पे एक मीठी सी मुस्कान छोड़ जाती है...
आती रहो ऐसे ही रात तुम...करती रहो ढेर सारी बात तुम..
उसी मासूमियत उसी रूमानियत के साथ,
ऐ रात! तुम्हार इंतज़ार हर रोज़ होता है..."
लेकिन इस रात में बातें अलबेली होती है.
रात का सन्नाटा कई यादें साथ लाता है..
कुछ पुरानी, कुछ नयी, कुछ अनकही, कुछ अनसुनी का एहसास लाता है.
ये यादें दिल को कभी उदास करती है..
तो कभी मेरे चेहरे पे एक मीठी सी मुस्कान छोड़ जाती है...
आती रहो ऐसे ही रात तुम...करती रहो ढेर सारी बात तुम..
उसी मासूमियत उसी रूमानियत के साथ,
ऐ रात! तुम्हार इंतज़ार हर रोज़ होता है..."