पिछ्ले एक हफ़्ते से इस पर लिखना चाह रही थी, पर लिख आज रही हूँ । हैबिटैट में ऐसी तैसी डेमोक्रेसी नाम से एक स्टैंड-अप कॉमेडी शो हो रहा था । मुझे ये शो हर हाल में देखना था, इतनी शिद्दत से मैंने यह शो देखने की चाहत की थी कि मुझे इसकी टिकट इस शो के मिस्टर परफ़ॉर्मर की दया-दृष्टि से मिल गयी । जी, इस मामले में तो मेरी किस्मत बहुत अच्छी निकली ।
बहरहाल, यह एक स्टैंड अप कॉमेडी शो था । इसके पहले इस तरह का शो कभी देखा नहीं था, तो मेरे लिए बहुत ख़ास रहा । सच कहूं, तो "स्टैंड अप कॉमेडी" की सही परिभाषा मुझे भी नहीं पता थी । पर यह शो देखने के बाद कुछ-कुछ तो समझ आ गया । ख़ास बात यह रही कि शो में पहला मज़ाक/सटायर/तंज इसी बात पर था कि स्टैंड अप शो होता क्या है ! वरुण ग्रोवर और संजय राजौरा ने ऑडिटोरियम में खचाखच भरी भीड़ को हंसाने का ज़िम्मा लिया था और इसमें उनका बखूबी साथ निभाया म्यूजिशियन राहुल राम ने । बीच-बीच में डेमोक्रेसी पर तंज करते गाये कुछ गीत बेहद मनोरंजक रहे । लाइव कॉमेडी शो की यही अच्छी बात होती है कि परफॉरमेंस देने वाले सीधे तौर पर ऑडियंस से कनेक्ट करते हैं । यहाँ भी वही हुआ, लेकिन वरुण ग्रोवर को दिल्ली की ऑडियंस के ह्यूमर पर शायद थोड़ा शक़ था.. इसलिए जब उनके एक पंच पर हम सब हँसे, तो मिस्टर परफ़ॉर्मर ने बड़ी ही अदा के साथ कहा कि, "I never thought delhi audience will understand it." इस बात पर उन्हें डबल तालियाँ मिली । नब्बे मिनट तक पूरा ऑडिटोरियम हँसता रहा । हाँ, शो के दौरान कुछ तीखी गालियों का ज़रूर इस्तेमाल हुआ, जिन्हें मैं अगली बार से कम करने को कहूँगी ।
हँसते-हँसाते नब्बे मिनट का शो खत्म हुआ पर मुझे लग रहा था कि यह नब्बे मिनट थोड़ी देर और चलता । शो खत्म होने के बाद पूरी ऑडिटोरियम ने स्टैंडिंग ओवेशन दिया (पूरे दिल से)। इस पूरे दिल से में दिल्लीवालों को एक परसेंट इस बात की भी ख़ुशी थी कि यह शो मुंबई के बदले पहले दिल्ली में हुआ । इस मामले में दिल्ली १-० से आगे हो चुका है ।
हालांकि, मुझे इस शो की टिकट बहुत आराम से मिल गयी थी फिर भी मैं इसके अगले शो के लिए सबको टिकट खरीद कर इसे देखने की गुज़ारिश करुँगी । यकीन मानिए, मुझे इस शो के प्रमोशन करने के पैसे नहीं मिले है, लेकिन हाँ, ये ज़रूर कहूँगी कि जहां आप 250-300 ₹ की Sub खा सकते हैं और उससे चर्बी चढ़ा सकते हैं तो उस चर्बी को उतारने के लिए और उस Sub से भी ज़्यादा हेल्दी 'हंसने' के लिए तो इतने पैसे खर्च किये ही जा सकते है । यह बात मुझे ज़्यादा अच्छे से समझ आई जब मैंने अपनी रो में ही बैठे एक उम्रदराज़ को पूरे शो के दौरान ज़ोर-ज़ोर से हँसते सुना था । और मैं, जिसे वापस आते वक़्त मेट्रो-ऑटो में हर बात हल्की लग रही थी । फ़िक्र नॉट टाइप । और ये सब कुछ स्टेज के उन 'माय डिअर' परफारमर्स की वजह से ।
बहरहाल, यह एक स्टैंड अप कॉमेडी शो था । इसके पहले इस तरह का शो कभी देखा नहीं था, तो मेरे लिए बहुत ख़ास रहा । सच कहूं, तो "स्टैंड अप कॉमेडी" की सही परिभाषा मुझे भी नहीं पता थी । पर यह शो देखने के बाद कुछ-कुछ तो समझ आ गया । ख़ास बात यह रही कि शो में पहला मज़ाक/सटायर/तंज इसी बात पर था कि स्टैंड अप शो होता क्या है ! वरुण ग्रोवर और संजय राजौरा ने ऑडिटोरियम में खचाखच भरी भीड़ को हंसाने का ज़िम्मा लिया था और इसमें उनका बखूबी साथ निभाया म्यूजिशियन राहुल राम ने । बीच-बीच में डेमोक्रेसी पर तंज करते गाये कुछ गीत बेहद मनोरंजक रहे । लाइव कॉमेडी शो की यही अच्छी बात होती है कि परफॉरमेंस देने वाले सीधे तौर पर ऑडियंस से कनेक्ट करते हैं । यहाँ भी वही हुआ, लेकिन वरुण ग्रोवर को दिल्ली की ऑडियंस के ह्यूमर पर शायद थोड़ा शक़ था.. इसलिए जब उनके एक पंच पर हम सब हँसे, तो मिस्टर परफ़ॉर्मर ने बड़ी ही अदा के साथ कहा कि, "I never thought delhi audience will understand it." इस बात पर उन्हें डबल तालियाँ मिली । नब्बे मिनट तक पूरा ऑडिटोरियम हँसता रहा । हाँ, शो के दौरान कुछ तीखी गालियों का ज़रूर इस्तेमाल हुआ, जिन्हें मैं अगली बार से कम करने को कहूँगी ।
हँसते-हँसाते नब्बे मिनट का शो खत्म हुआ पर मुझे लग रहा था कि यह नब्बे मिनट थोड़ी देर और चलता । शो खत्म होने के बाद पूरी ऑडिटोरियम ने स्टैंडिंग ओवेशन दिया (पूरे दिल से)। इस पूरे दिल से में दिल्लीवालों को एक परसेंट इस बात की भी ख़ुशी थी कि यह शो मुंबई के बदले पहले दिल्ली में हुआ । इस मामले में दिल्ली १-० से आगे हो चुका है ।
हालांकि, मुझे इस शो की टिकट बहुत आराम से मिल गयी थी फिर भी मैं इसके अगले शो के लिए सबको टिकट खरीद कर इसे देखने की गुज़ारिश करुँगी । यकीन मानिए, मुझे इस शो के प्रमोशन करने के पैसे नहीं मिले है, लेकिन हाँ, ये ज़रूर कहूँगी कि जहां आप 250-300 ₹ की Sub खा सकते हैं और उससे चर्बी चढ़ा सकते हैं तो उस चर्बी को उतारने के लिए और उस Sub से भी ज़्यादा हेल्दी 'हंसने' के लिए तो इतने पैसे खर्च किये ही जा सकते है । यह बात मुझे ज़्यादा अच्छे से समझ आई जब मैंने अपनी रो में ही बैठे एक उम्रदराज़ को पूरे शो के दौरान ज़ोर-ज़ोर से हँसते सुना था । और मैं, जिसे वापस आते वक़्त मेट्रो-ऑटो में हर बात हल्की लग रही थी । फ़िक्र नॉट टाइप । और ये सब कुछ स्टेज के उन 'माय डिअर' परफारमर्स की वजह से ।
हैबिटैट कौन सी जगह है ?
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