आओ कभी साथ..
यूँ ही नीले आसमान के नीचे,
हरी घास पर
सफ़ेद-पीली चादर बिछाकर
देर तलक गुफ़्तगू करेंगे ।
चाँद आजकल बेईमान हो चला है..
चुपचाप सारी बातें सुनता है..
ख़ुद की तारीफ़ पर बड़ा इतराता है..
दूर रहकर भी, हम जैसों को,
अपनी ठंडक से जलाता है...
बड़ा बेईमान है ये..
चलो ना, यूँ ही इसे जलाते हुए..
हम भी इसकी लौ में बैठे
इसको तकते रहें ।
अपनी मुहब्बत से...
इसे भी जलाते रहें ।
चलो ना, इसी बहाने
सुबह के सूरज का भी इंतज़ार कर ले ।
उसे भी अपने मुहब्बत का दीदार करा दें..
थोड़ा सा उसे भी जला दें ।
......
Again it is too good....lovely to read n think.....soon you will be master of love poetry.....all words put together are nicely woven to express desired feelings......n this time I could not continue with my hidden bad habit of thinking that this particular word could be omitted.....:).... all words are necessary n expressive....really good poem ...... congratulations.....God bless you...:)
ReplyDeleteचाँद अपनी ठंढी आहें हम में भरता है... अपनी ठंढक से हमें गर्म रखता है ...
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