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Wednesday, November 27, 2013

देखना एक दिन...

देखना एक दिन,
गोरैया बनकर तुम्हारे आँगन में आकर बैठूंगी...
सुबह-सुबह की तुम्हारी हरकतों को,
टुकुर-टुकुर देखूंगी...
दाना डाल देना,
चुपचाप फिर चली जाऊँगी।

देखना एक दिन,
गिलहरी बनकर तुम्हारी बालकनी में टहलूंगी...
कमरे के अंदर हल्के से झांककर,
तुम्हें लैपटॉप पे काम करते हुए देखूंगी..
धीरे से तुम्हारे करीब आने की कोशिश करुँगी,
पलटकर जब देखोगे मेरी ओर..
तब सरपट बालकनी में भाग जाऊँगी ।

देखना एक दिन,
कोयल बनकर तुम्हारी छत पर आऊँगी...
कुहू करते करते प्यास बड़ी लगती है..
पानी रख देना,
इस कोयल को तुम्हारे हाथ से पानी बड़ी मीठी लगती है..
पानी पियूंगी, तुम्हें देखूंगी,
कुहू करुँगी और फिर उड़ जाऊँगी ।

अगर ऐसा होता तो तुमसे मिलना कितना आसान होता ना !
इंतज़ार करना,
कभी ऐसा ही भेस बनाकर तुमसे मिलने आ जाऊँगी..

अगर तुम मुझे पहचान नहीं पाओगे..
कम से कम मैं तो तुम्हें जी-भर देख पाऊँगी...
इंतज़ार करना,
इक दिन तुम्हारे आँगन में ज़रूर आऊँगी ...

6 comments:

  1. बहुत खुब...."शब्दों में भाव को छिपाने की तरकीब लाजवाब कर देता है ।"

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  2. वर्तनी पर ज़रा सा ध्यान रखें बाकी शानदार समेटा है भावो को।

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  3. Your expressions are fabulous ..........beautiful

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  4. गोरैया,गिलहरी,कोयल तीनो मेरे बचपन की यादें हैं ..अचानक से मैं अपने घर के कमरे की खिड़की पे पहुँच गया..गजब

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