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Sunday, November 24, 2013

नज़्में सुना जाना...

जब दूर चली जाऊँगी तुमसे...
तब मुझे ढूंढते हुए मेरी क़ब्र पे आना..
दो नज़्में सुना जाना..
मेरे साथ-साथ मेरे हिस्से की ज़मीं भी हसीं हो जायेगी ।

फूल ना लाना,
आँसू भी ना बहाना,
बस दो बातें सुना जाना ।

समंदर के किनारे वाली बेंच पर,
जहाँ रोज़ बैठा करते थे हम..
रेत का एक घर बनाते,
अपना नाम लिखा करते थे हम..
और जब समंदर अपने साथ
बहा ले जाती थी हमारे आशियाने को,
मैं कहती ये हमारे सपने के पूरा होने का इशारा है..
तुम धीरे से मेरे कानों में कहते - 'नौटंकी' ।
कौन-सा ऐसा तूफ़ान आया फिर,
जो बहा ले गया हमारी ख़्वाहिशों के आशियाने को ?
तुम क्यूँ नहीं समझ पाए ?

अब देखो मैं ज़मीं के अंदर मिट्टी-मिट्टी, रेत-रेत इकट्ठा कर रही हूँ..
फिर कभी मिलेंगे, तो बनायेंगे अपना आशियाना..
समंदर से कहेंगे, कर दो हमारी ख़्वाहिश पूरी...

लेकिन तब तक
जब भी मुझसे मिलने आना,
दो नज़्में सुना जाना..
फूल ना लाना,
फूल मुरझा जाते है।
नज़्में सुना जाना..
शब्दें खिली रहती है..
ज़िंदा रहती है...
सुकून देती है।

नज़्में सुना जाना...
दो नज़्में सुना जाना ...

4 comments:

  1. जब दूर चली जाऊँगी तुमसे...
    तब मुझे ढूंढते हुए मेरी क़ब्र पे आना..
    दो नज़्में सुना जाना..

    उप्प्स पहली ही लाइन कमाल है ...उम्दा कहूँ तो कम होगा ...काश मैं भी ऐसा लिख आता

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  2. आँचल जब लिखती है शब्द नहीं ऐहसास बोलते हैं मैं हमेशा उन जज्बातों का फैन रहा हूँ जो खिंचे आते हैं चंद शब्दों के साथ और बोल उठते हैं सहसा जीवन के बीच अच्छा लगता है आँचल का लिखना और हमारा पढ़ना

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  3. फूल ना लाना
    आँसू भी ना बहाना
    - कमाल करती हो भई... मैं तो संजीदा हो गया । समंदर की लहरों की तरह बार बार ये लाइने मेरे पास आती रही ।
    महसूस करना और फिर उसे ज्यों का त्यों महसूस करा देना ...यह जज्बा और सामर्थ्य विरलों को ही मिलती है ।

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