'चुप'
कहने को तो कितनी शांत है ये, लेकिन भीतर ही भीतर कितना शोर करती रहती है.
अपनी बात पर अडिग, कभी जिद्दी, कभी चंचल, कभी ख़ामोश, कभी दौड़ती, कभी ठहरती…
कुछ पाती, कुछ खोती... अपनी यादों के संग कुछ हंसाती तो कुछ रुलाती.
'चुप'
कभी मुझ जैसी अल्हड़, नटखट, चुलबुली हो जाती है,
तो कभी तुम जैसी शांत और स्थिर.
कभी सागर तो कभी नदी.. कभी दरिया तो कभी सूखे कुएँ का बचा पानी.
'चुप'
तुम चुप क्यूँ नहीं रहती ?
कितना बोलती हो तुम !
मेरे दिमाग में.. मेरे मन में हमेशा उथल-पुथल मचाती हो तुम !
मेरे साथ ही ऐसी हो या
सब के साथ ऐसा करती हो तुम...!
'चुप'.....
कहने को तो कितनी शांत है ये, लेकिन भीतर ही भीतर कितना शोर करती रहती है.
अपनी बात पर अडिग, कभी जिद्दी, कभी चंचल, कभी ख़ामोश, कभी दौड़ती, कभी ठहरती…
कुछ पाती, कुछ खोती... अपनी यादों के संग कुछ हंसाती तो कुछ रुलाती.
'चुप'
कभी मुझ जैसी अल्हड़, नटखट, चुलबुली हो जाती है,
तो कभी तुम जैसी शांत और स्थिर.
कभी सागर तो कभी नदी.. कभी दरिया तो कभी सूखे कुएँ का बचा पानी.
'चुप'
तुम चुप क्यूँ नहीं रहती ?
कितना बोलती हो तुम !
मेरे दिमाग में.. मेरे मन में हमेशा उथल-पुथल मचाती हो तुम !
मेरे साथ ही ऐसी हो या
सब के साथ ऐसा करती हो तुम...!
'चुप'.....
Very nice anchal
ReplyDeleteअपनी बात पर अडिग, कभी जिद्दी, कभी चंचल, कभी ख़ामोश, कभी दौड़ती, कभी ठहरती…
ReplyDeleteकुछ पाती, कुछ खोती. Nice One.
डायरी का छोटा सा पन्ना कैसे पूरी कविता बन गयी या आंचल की खुलती बिखरती दिल में सिमट कर नभ तक फैलती आशाएं भागीरथी के वेग सी शब्दों में लहरा गयीं .................. अति सुंदर ................ आंचल के मन सी ..
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ReplyDeleteकिसे "चुप" करने की जद्दोजहत करते हैं आप
ReplyDeleteदिल ने भला किसी की सुनी हैं कभी ? manoj
तुम चुप क्यूँ नहीं रहती ?
ReplyDeleteकितना बोलती हो तुम !
मेरे दिमाग में.. मेरे मन में हमेशा उथल-पुथल मचाती हो तुम !
मेरे साथ ही ऐसी हो या
सब के साथ ऐसा करती हो तुम... अति सुन्दर ..... लाज़वाब ....
Simple and sweet poem, liked it.
ReplyDeleteawesome........
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