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Friday, July 12, 2013

आवाज़ेपा...

हाँ..
    सुन लिया मैंने वो जो तुमने नहीं कहा है अब तलक..
    जान गयी हूँ वो जो तुमने छुपा रखा है अपने सीने में..
    समझ लिया मैंने वो जो तुमने रखा है बस अपने तलक...
    लेकिन शायद तुम भूल गए,
    तुम्हीं ने कहा था कि.. सोच की अदला-बदली ज़रूरी है..
                           अब अपनी बात से खुद ही मुकर रहे हो..
    खुद को पिंजरे में क्यूँ कैद कर रहे हो..!
    खुद के बनाए जाल में क्यूँ फंस रहे हो...!
 

हाँ,
     मैंने सुन लिया है वो.. लेकिन फिर भी इक बात कहनी है तुमसे

     तुम चाहते हुए भी खुद को मुझसे अलग नहीं कर सकते
     और मैं ना चाहते हुए भी तुमसे जुड़ती जा रही हूँ..

     इस आगाज़ का अंजाम नहीं मालूम मुझे..
     लेकिन अब तुम्हारे और करीब होती जा रही हूँ मैं..
     तुम्हे इल्म न हो इस बात का ऐसा मुमकिन नहीं..
     लेकिन तुम्हारी आवाज़ेपा* अपनी धडकनों में महसूस करती जा रही हूँ मैं..

हाँ..
     सुन लिया मैंने वो जो तुमने नहीं कहा है अब तलक...



* पाँव की आहट
 

6 comments:

  1. अंजाम की परवाह आगाज़ नहीं करता जब खुद से लगे दिल तो क्या दिल्लगी खुदा से। बहुत अच्छी तरह भावनाएं बहाव सी निकली हैं पढने में अच्छी है महसूस करने में गहरी

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  2. मैं कुछ नहीं छुपा रहा हूँ.तुम्हे जानने की एक छोटी सी कोशिश थी मेरी.तुम्हे समझना चाहता हूँ की इस सागर मैं कितना डूबना हैं पर मुझे लगता हैं मैं डूबता ही जा रहा हूँ .हाँ मैं समल नहीं पा रहा हूँ पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा हैं की मैं अपने वजूद को खोता जा रहा हूँ .मैं चाहकर भी तुम से दूर नहीं जा पा रहा हूँ .जाने कोई अनजाने से ख्वास मेरी रूह को कैद कर रहा हैं..........हा हा हा हा हा हा :) :)

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  3. खुद को पिंजरे में क्यूँ कैद कर रहे हो..!
    खुद के बनाए जाल में क्यूँ फंस रहे हो...!
    उम्दा लेखन ..लिखते रहिये ..लिखना ही जिंदगी है ..:)

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    1. पर हैं कहाँ हैं आप ट्विटर पर जल्दी आ जाइए वापस आइये ...मनोज पटेल हूँ ..चटोरी को भी साथ मैं लाइयेगा नहीं आप की खबर ली जाएगी :)

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