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Tuesday, May 21, 2013

अनकही...

अक्षरा आज बड़े दिनों बाद अकेली बाहर निकली थी..मॉल गयी..शॉपिंग की...इधर-उधर घूमी..बहुत खुश थी वो... अचानक शिवानी टकरा गयी.. कॉलेज की दोस्त...शायद अक्षरा अपनी शादी के बाद आज उस से मिल रही थी..दोनों गले लग गयी. पास ही के एक कॉफ़ी शॉप में बैठ, हो गयी नयी-पुरानी बातें शुरू.. अक्षरा के बेटे का स्कूल से आने का टाइम हो रहा था, इसलिए उसने शिवानी से कहा, "सिर्फ 15-20min ही होंगे मेरे पास यार..फिर कभी प्लान बना मिलने का..खूब गप्पे मारेंगे"

शिवानी ने कहा, "हाँ यार ज़रूर, वैसे तू सागर की शादी में तो आ रही है ना!"
चहकती अक्षरा थोड़ा थम सी गयी, कुछ सोंचा और फिर झट से एक छोटी सी स्माइल अपने चेहरे पे लाते हुए कहा, "सागर शादी कर रहा है..वाह! कब है शादी? लड़की कौन है? बहुत ख़ुशी हुई यार. हाँ कोशिश करूंगी शादी में आने की. अच्छा अब निकलती हूँ..स्कूल की छुट्टी का टाइम हो रहा है. तुम आओ कभी घर पे..." सारी बाते एक ही सांस में कहते हुए अक्षरा कुर्सी से उठने लगी.

शिवानी ने धीरे से कहा, अब भी इतनी uncomfortable हो उसका नाम सुनकर!"
अक्षरा: "नहीं यार बस लेट हो रहा है...मैं अपनी फॅमिली में बहुत खुश हूँ."
शिवानी, "खुश रहा कर सबको ख़ुशी होगी.. और हाँ सागर शायद तुम्हारे घर शादी का कार्ड लेकर जाए.."

अक्षरा ने फिर वही मुस्कान पहनी, शिवानी के गले लगी और निकल गयी. कॉफ़ी शॉप से स्कूल और स्कूल से घर तक आते-आते अक्षरा यादों में ही डूबी रही..सागर और वो..कॉलेज के दिन..दोस्ती हुई और फिर प्यार..कॉलेज के बाद दोनों की जॉब भी लग गई.. अक्षरा ने तो सागर को शादी के लिए प्रोपोज भी किया था..लेकिन सागर ने ही मना किया..कहा था घर वाले लव मैरिज के लिए नहीं मानेंगे..करिएर को लेकर सीरियस अक्षरा अपनी जॉब तक छोड़ने को तैयार थी, लेकिन सागर फिर भी नहीं माना था...कुछ दिनों बाद अक्षरा की शादी हो गयी..और उसने अपने इस नए जीवन की शुरुआत कर ली...और सागर सिर्फ एक याद बन कर रह गया था..अब जब शिवानी ने बताया की सागर शायद उसे शादी का कार्ड देने आये..तो वो समझ नहीं पा रही थी की कैसे रियेक्ट करेगी..फिर खुद से ही कहने लगी..रियेक्ट क्या करना मैं नार्मल रहूंगी...आखिर मैं अपनी लाइफ में बहुत आगे बढ़ चुकी हूँ..खुश हूँ..और दुआ है की सागर भी खुश रहे..

2-3 दिन यूँ ही बीत गए...तीसरे दिन सागर शादी का कार्ड लेकर अक्षरा के घर पहुँच गया..बाकी दोस्तों से address  पता कर लिया था, इसलिए वो बिना इन्फॉर्म किये ही पहुंचा था.. छुट्टी का दिन था सो घर पे अक्षरा अपने पति और बेटे के साथ थी...दरवाजा खुला सागर आया..अक्षरा ने सारी पुरानी भावनाओं की गठरी बनाके साइड में रखी फिर अपनी वही टिपिकल स्माइल के साथ सागर को हेल्लो बोला और अपने पति से कहा, ये मेरा कॉलेज फ्रेंड सागर है..अक्षरा के पति ने भी अच्छा वेलकम किया और हलकी फुल्की बातचीत करने लग गया.

इतने दिनों बाद सागर को अपने सामने देख अक्षरा को बहुत कुछ याद आ रहा था...मन कर रहा था की सागर की आँखों में आँखें डालकर बातें करे, लेकिन वो बहुत ही नार्मल रही..शादी कब है..कहाँ है..लड़की कैसी है..सब बातें बड़े आराम से पूछ रही थी वो...पति को ऑफिस से फ़ोन आ गया और वो साइड में चले गए...अचानक उसे लगा की वो अब टूटने वाली है..फेक स्माइल देते देते थक चुकी थी वो... फिर भी नार्मल बने रहने का नाटक करते हुए अक्षरा स्माइल करती रही..सागर भी अकेले में कुछ कहना चाह रहा था..अभी वो शुरुआत ही करने वाला था की अक्षरा समझ गयी और उसने बात घुमा कर फिर से शादी की बात शुरू कर दी..अच्छा ये बताओ तुम्हारी शादी का मेन्यू क्या है क्या-क्या होगा खाने में..बहुत मज़ा आएगा यार..सारे पुराने दोस्त मिल लेंगे..बड़े दिनों बाद सब एक साथ जुटेंगे.

सागर ने भी महसूस किया कि अक्षरा बेहद खुश है...अब पुरानी यादो को खंगाल कर कोई फायदा नहीं...हालांकि वो बस सॉरी कहना चाह रहा था..लेकिन शायद अब इसकी भी ज़रुरत नहीं..अक्षरा खुश है यही काफी है..अब वो भी अक्षरा और उसके पति से नार्मल बाते कर बस निकलने ही वाला था.


"कुछ रिश्ते यूँ ही बीच रास्ते में छूट जाते है..बिना चाहे..बिना कुछ कहे..कोई जिम्मेवार भी नहीं होता इसे तोड़ने का..बस हालात साथ नहीं देते...सब अपनी दुनिया में आगे बढ़ते है..खुश रहते है..लेकिन एक चाह हमेशा बनी रहती है कि, काश! काश उस वक़्त... वक़्त और हालात ने हमारा साथ दिया होता.."

 

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