चलना इन सीढ़ियों के पार कभी
हवा के सुकून में बहना कभी
उस पार,
किले की दीवार का एक परदा होगा
ज़माने भर की बेताब निग़ाहों से छुपाता होगा
उस पार,
एक पूरा दिन अपना होगा
एक पूरे साल का बसंत होगा
हवा के सुकून में बहना कभी
उस पार,
किले की दीवार का एक परदा होगा
ज़माने भर की बेताब निग़ाहों से छुपाता होगा
उस पार,
एक पूरा दिन अपना होगा
एक पूरे साल का बसंत होगा
चलना इन सीढ़ियों के पार कभी...
इस तरफ़ सारी रस्में होंगी
उस ओर सिर्फ़ राहतें होंगी
इस तरफ़ सारी शिकायतें होंगी
उस ओर सिर्फ़ मोहब्बतें होंगी
उस ओर सिर्फ़ राहतें होंगी
इस तरफ़ सारी शिकायतें होंगी
उस ओर सिर्फ़ मोहब्बतें होंगी
इस तरफ़ बाहर-भीतर का शोर होगा
उस ओर सिर्फ़ हम दोनों की साँसें होंगी
चलना इन सीढ़ियों के पार कभी...
उस ओर सिर्फ़ हम दोनों की साँसें होंगी
चलना इन सीढ़ियों के पार कभी...
बहुत दिनों के बाद | बहुत बढ़िया हैं, मेरे पसंद की है | एकदम बसंती हवाओं के झोंकों जैसा है |
ReplyDeleteSo proud to see you grow as a writer. Lekhan aur vichaaron par pakad masboot hoti saaf dikh rahi hai. Congrats and best wishes with this journey.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteumda post,achcha lga padh kar
ReplyDelete