कौन हैं ये मेहनतकश लोग,
जो साहित्य के एक सम्मलेन का टेंट लगा रहे है!
कल जिस सम्मलेन में किताबें होंगी
और किताबों के पति/शौहर/हस्बैंड यानि
लेखक-शायर-राइटर-पोएट शोभा बढ़ाएंगे,
उनकी साज-सज्जा में ये एक दिन
पहले से ही पसीना बहा रहे है ।
गर्मी से धूप से परेशान होकर
और जाड़े में कनकनी से कंपकंपाते हुए...
कील ठोंकते वक़्त हथौड़ा
कील की जगह हाथ पर लग गया
...आह !
किताबों के असली आशिक़ तो यही हुए ना !
टेंट लग रहा है... मंच सज रहा है ।
कुर्सियां कतार में तनकर खड़ी हो रही हैं ।
कॉफ़ी का स्टॉल लग गया ।
एक दिन पहले से ही इस सजावट में लगे
ये मजदूर
सम्मेलन ख़त्म होते ही,
खंभे उखाड़ने लगेंगे..
रस्सियां खोलने लगेंगे..
कालीन-परदे सब उठाकर ले जायेंगे,
फिर कहीं किसी सम्मेलन को चलाने...
किताबों का संसार सजाने ।
किताबें भी जायेंगी सजने वहाँ ।
ये भी किसी बंजारे से कम नहीं हुईं...
हर रोज़ कहीं न कहीं
इनका एक मेला लगता है,
कभी छोटा-सा तो कभी भव्य-महाभव्य ।
फिर लगेगा एक नया टेंट..
फिर आयेंगे ऐसे मेहनतकश लोग...
achcha hai l........ekin poets ko kyo hadka rhi ho...:)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है। पंजाबी के कुछ शब्द हैं ऐसे ही गुमनाम सिपाहियों के लिए
ReplyDeleteउस दा नाम-निशान नहीं है, जिस दे सीने चोट्टा ने,
खाइयां खोदने वाले नू फरहाद समझ लया लोकां ने।
melon/sahity-sammelon ko is alag nazar se dikhane ke liye shukriya . Prashansniy prayas hai. bahut khoob !
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है, और बयान किया है,
ReplyDelete"क्या होती होगी पीड़ा उस लड़की की"
मैंम क्या आप फेसबुक या ट्विटर पर भी हो,
क्या आपको वहाँ ज्वाइन कर सकता हूँ ?