सोचती हूँ जब मिलोगे तब क्या कहूँगी तुमसे ?
कुछ कह भी पाऊंगी या सिर्फ देखती ही रह जाऊंगी तुम्हे...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कुछ नहीं कहूँगी तुमसे..
बस कस कर गले लग जाऊंगी तुम्हारे...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कितना चहकूंगी मैं..
पाँव ज़मीं पर नहीं होंगे, जब साथ तुम्हारे होऊंगी मैं...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब क्या करुँगी मैं..
अपनी बातों की चटर-पटर से भर दूंगी तुम्हें...
सोचती हूँ जब मिलोगे, तब...
...नहीं, कुछ नहीं कह पाऊंगी मैं
चुप ही रह जाऊंगी मैं ।
फिर सोचती हूँ जब मिलोगे तो तुम क्या करोगे ?
जब गले लगूंगी तब अपने सीने में छुपा लोगे और कानों में हल्के से कुछ कह दोगे ।
जब बकबक करुँगी तब मेरे होंठो पर अपनी ऊँगली रखकर चुप करा दोगे..
और कहोगे वो बात, जो मैं सुनना चाहती हूँ ।
या जब साथ बैठी रहूंगी तुम्हारे.. तो बस हाथो में मेरा हाथ थामे रहोगे !!
जब ऐसा करोगे तब क्या करुँगी मैं ?
मैं...!!!
...मैं तो बस नीची नज़रों से तुम्हें देखती रहूंगी..
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कुछ कहोगे भी या नहीं कहोगे मुझसे !!
बिना कुछ कहे सब बोल जाने की आदत जो है तुम्हारी,
पर मैं पगली नहीं समझती ना तुम्हारी इस भाषा को ।
सुनो ना,
कुछ कह देना... बस सीने में भर लेना..
झटकना मत... बस कसकर गले से लगा लेना.....
कुछ कह भी पाऊंगी या सिर्फ देखती ही रह जाऊंगी तुम्हे...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कुछ नहीं कहूँगी तुमसे..
बस कस कर गले लग जाऊंगी तुम्हारे...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कितना चहकूंगी मैं..
पाँव ज़मीं पर नहीं होंगे, जब साथ तुम्हारे होऊंगी मैं...
सोचती हूँ जब मिलोगे तब क्या करुँगी मैं..
अपनी बातों की चटर-पटर से भर दूंगी तुम्हें...
सोचती हूँ जब मिलोगे, तब...
...नहीं, कुछ नहीं कह पाऊंगी मैं
चुप ही रह जाऊंगी मैं ।
फिर सोचती हूँ जब मिलोगे तो तुम क्या करोगे ?
जब गले लगूंगी तब अपने सीने में छुपा लोगे और कानों में हल्के से कुछ कह दोगे ।
जब बकबक करुँगी तब मेरे होंठो पर अपनी ऊँगली रखकर चुप करा दोगे..
और कहोगे वो बात, जो मैं सुनना चाहती हूँ ।
या जब साथ बैठी रहूंगी तुम्हारे.. तो बस हाथो में मेरा हाथ थामे रहोगे !!
जब ऐसा करोगे तब क्या करुँगी मैं ?
मैं...!!!
...मैं तो बस नीची नज़रों से तुम्हें देखती रहूंगी..
सोचती हूँ जब मिलोगे तब कुछ कहोगे भी या नहीं कहोगे मुझसे !!
बिना कुछ कहे सब बोल जाने की आदत जो है तुम्हारी,
पर मैं पगली नहीं समझती ना तुम्हारी इस भाषा को ।
सुनो ना,
कुछ कह देना... बस सीने में भर लेना..
झटकना मत... बस कसकर गले से लगा लेना.....
bahut badhiya likhi ho aanchal....
ReplyDeleteThank you sir :)
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआज कंजूस उँगलियों कि हरकत से निकलती रचना पढ़ने का अवसर मिला ....लम्बे समय बाद ......या शायद शिकायत ही गलत हो हम खाली लेखकों के बीच कम समय मिलने की शिकायत नहीं होती सो हम दूसरों के भी खाली होने की अपेक्षा रखते हैं ......अब बात रचना की ...... आपका लेखन कल्पनाओं की वास्तविक उड़ान के बीच अति विशिष्ट हो जाता है ....... सबसे बेहतर है नये युग की युवती की पूर्वगृह से पूर्णतः मुक्त नेचुरल अभिव्यक्ति ..........बहुत अच्छी रचना है ........और एक बात ......आपसे प्रोज़ की अपेक्षा लम्बे समय से है।
ReplyDeleteAmazing ....bahut khoob ...shaandaar !!!!!!!
ReplyDeleteyour words are lyk a diamonds ..... precious.. i don't hav words... yar
ReplyDeleteअच्छा है !
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