अरुणिमा - (मुस्कुराते हुए) क्या कहा था तुमने, मैं रह नहीं पाउंगी तुम्हारे बिना. हुह! देखो मैं पहले से ज्यादा खुश हूँ, दृढ हूँ.
सागर - Please! मैं अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हूँ..सभी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ते है, मैं बढ़ गया तो कौन सी गलती कर दी?
अरुणिमा - मैंने तो कहा ही नहीं कि तुमने कोई गलती की...बेवकूफ तो मैं थी, मैंने अपना वक़्त बर्बाद किया. और तुम्हे तो इस बात का एहसास भी नहीं था कि तुम म...ेरी भावनाओं को डस्टबिन में फेंके जा रहे हो, है ना!
और पता है मेरे जिस अल्हड़पन को देखकर तुम अपनी नाक-भोंहे सिकोड़ लेते थे...उस अल्हड़पन को 'खूबसूरती' भी कहते है. लेकिन तुम्हारे लिए तो खूबसूरती के कुछ और ही पैमाने थे.
सागर - (लम्बी सांस लेते हुए) अरुणिमा, हम अब भी दोस्त बन कर रह सकते है.
अरुणिमा - दोस्त ! Oh C'mon! ये अच्छा है प्यार का रिश्ता ना निभा सके तो दोस्त बना लो..वाह. साफ़-साफ़ ये क्यूँ नहीं मान लेते कि तुम्हे मेरा साथ चाहिए ही...ह्म्म्म.
दोस्ती के बारे में सोचना भी मत...जब प्यार कि कद्र नहीं की तो दोस्ती की क्या ख़ाक कद्र करोगे. रहने दो. मैं छोड़ रही हूँ तुम्हे (यही तो तुम सुनना चाहते थे).
सागर - तुम मुझे भुला नहीं पाओगी.
अरुणिमा - जनाब, मेरी फ़िक्र करना छोडिये, अपनी सोचिये. मैं मस्त थी, मस्त हूँ, मस्त रहूंगी. और ज़िन्दगी के सारे मुसाफिर आख़िर तक मेरे साथ रह जायेंगे तो अच्छी-बुरी यादें कौन देकर जाएगा.
मैं तो चली....गुनगुनाते हुए~~~
सागर - Please! मैं अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हूँ..सभी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ते है, मैं बढ़ गया तो कौन सी गलती कर दी?
अरुणिमा - मैंने तो कहा ही नहीं कि तुमने कोई गलती की...बेवकूफ तो मैं थी, मैंने अपना वक़्त बर्बाद किया. और तुम्हे तो इस बात का एहसास भी नहीं था कि तुम म...ेरी भावनाओं को डस्टबिन में फेंके जा रहे हो, है ना!
और पता है मेरे जिस अल्हड़पन को देखकर तुम अपनी नाक-भोंहे सिकोड़ लेते थे...उस अल्हड़पन को 'खूबसूरती' भी कहते है. लेकिन तुम्हारे लिए तो खूबसूरती के कुछ और ही पैमाने थे.
सागर - (लम्बी सांस लेते हुए) अरुणिमा, हम अब भी दोस्त बन कर रह सकते है.
अरुणिमा - दोस्त ! Oh C'mon! ये अच्छा है प्यार का रिश्ता ना निभा सके तो दोस्त बना लो..वाह. साफ़-साफ़ ये क्यूँ नहीं मान लेते कि तुम्हे मेरा साथ चाहिए ही...ह्म्म्म.
दोस्ती के बारे में सोचना भी मत...जब प्यार कि कद्र नहीं की तो दोस्ती की क्या ख़ाक कद्र करोगे. रहने दो. मैं छोड़ रही हूँ तुम्हे (यही तो तुम सुनना चाहते थे).
सागर - तुम मुझे भुला नहीं पाओगी.
अरुणिमा - जनाब, मेरी फ़िक्र करना छोडिये, अपनी सोचिये. मैं मस्त थी, मस्त हूँ, मस्त रहूंगी. और ज़िन्दगी के सारे मुसाफिर आख़िर तक मेरे साथ रह जायेंगे तो अच्छी-बुरी यादें कौन देकर जाएगा.
मैं तो चली....गुनगुनाते हुए~~~
"बादल पे पाँव है..या छूटा गाँव है..
अब तो भई चल पड़ी अपनी ये नाव है".....
अब तो भई चल पड़ी अपनी ये नाव है".....
सफ़र की दो बाते तो उसे याद होगी, क्या हुआ ग़र जो उसने एक ज़माना भुला दिया!!! अच्छा लगा पढ कर,,,
ReplyDeleteयह सागर हर जगह आ जाता है :-)
ReplyDelete"और ज़िन्दगी के सारे मुसाफिर आख़िर तक मेरे साथ रह जायेंगे तो अच्छी-बुरी यादें कौन देकर जाएगा. " वाह