सोचा नहीं था तुम ऐसे चली जाओगी. मुझे तो विश्वास भी नहीं हो रहा..तुम्हारा यूँ चले जाना बहुत खल रहा है,बहुत बुरा लग रहा है. कुछ भी नहीं कर पाए हम तुम्हारे लिए. सब कह रहे है तुम मरी नहीं हो बस इस दुनिया से एक बेहतर दुनिया में चली गयी हो. बस ये पता नहीं की तुम अब भी दर्द में हो,परेशान हो,बेताब हो या फिर चैन-ओ-सुकून से हो. लेकिन हम सब की यही आशा है कि तुम जहां भी हो तुम्हे शांति मिले. पर तुमने एक लौ जलाई है हम सब के भीतर, हमारे दिल में, हमारे दिमाग में और वादा है इस लौ को हम मद्धिम नहीं होने देंगे.
तुम कौन थी, कहाँ से थी? ना तो हम तुम्हारा नाम जानते है ना ही चेहरा, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यूँ तुम अपनी सी लगती हो. ऐसा लगता है जैसे शायद मैं तुमसे कभी मिली हूँ, कभी बातें की हो, कभी कहीं देखा हो! पता नहीं क्यूँ तुम 'दोस्त' सी लगती हो.. 'हमउम्र' और 'सखी' लगती हो. ना जाने-पहचाने भी मेरा तुम्हारा और अनगिनत लोगो का तुमसे रिश्ता जुड़ गया है. तुम हमारे घर की सदस्य बन चुकी हो. हर बात में तुम्हारा ज़िक्र जाने अनजाने आ ही जाता है. दिल-दिमाग तुम्हारे बारे में ही सोचते है, तुम्हारे तेरह दिनों के संघर्ष को याद कर आँखें भर आती है. तुमने जो दर्द सहा है उसे हम सब महसूस कर रहे है, हमें बहुत दुःख हो रहा है. बार-बार तुम्हारी माँ सोच में आती है, उस माँ के दुःख के लिए शब्द नहीं है. तुम्हारे पूरे परिवार पर जो बीत रही है, उसके लिए हम सब शर्मिंदा है और बेहद दुखी. बहरहाल नए साल का आना भी इस बार कुछ ख़ुशी नहीं दे रहा है, उत्साह और उमंग नहीं है लेकिन उम्मीद है की तुम्हे न्याय मिलेगा (और साथ ही कई 'दामिनी' को भी). इसके साथ ही एक कोशिश और रहेगी कि अब कोई 'दामिनी' 'अमानत' और 'निर्भय' ना हो.हज़ारो-लाखो लोग नए साल के लिए उत्साहित नहीं है..उनमे से एक मैं भी हूँ. तुममे कुछ तो बात थी जो तुम लाखो लोगो को एक साथ जोड़ कर चली गयी, बस ये एकजुटता..ये आदर-सम्मान ऐसे ही बना रहे. शायद हमारा-तुम्हारा साथ सिर्फ तेरह दिनों का ही था, ये साथ लम्बा चलता तो अच्छा लगता. तुम ना होते हुए भी हम सब के बीच हो..हम सब के साथ हो. तुम हम सब के साथ ज़िन्दगी की आखिरी सांस तक रहोगी.
अलविदा मेरी 'हमउम्र'!
तुम कौन थी, कहाँ से थी? ना तो हम तुम्हारा नाम जानते है ना ही चेहरा, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यूँ तुम अपनी सी लगती हो. ऐसा लगता है जैसे शायद मैं तुमसे कभी मिली हूँ, कभी बातें की हो, कभी कहीं देखा हो! पता नहीं क्यूँ तुम 'दोस्त' सी लगती हो.. 'हमउम्र' और 'सखी' लगती हो. ना जाने-पहचाने भी मेरा तुम्हारा और अनगिनत लोगो का तुमसे रिश्ता जुड़ गया है. तुम हमारे घर की सदस्य बन चुकी हो. हर बात में तुम्हारा ज़िक्र जाने अनजाने आ ही जाता है. दिल-दिमाग तुम्हारे बारे में ही सोचते है, तुम्हारे तेरह दिनों के संघर्ष को याद कर आँखें भर आती है. तुमने जो दर्द सहा है उसे हम सब महसूस कर रहे है, हमें बहुत दुःख हो रहा है. बार-बार तुम्हारी माँ सोच में आती है, उस माँ के दुःख के लिए शब्द नहीं है. तुम्हारे पूरे परिवार पर जो बीत रही है, उसके लिए हम सब शर्मिंदा है और बेहद दुखी. बहरहाल नए साल का आना भी इस बार कुछ ख़ुशी नहीं दे रहा है, उत्साह और उमंग नहीं है लेकिन उम्मीद है की तुम्हे न्याय मिलेगा (और साथ ही कई 'दामिनी' को भी). इसके साथ ही एक कोशिश और रहेगी कि अब कोई 'दामिनी' 'अमानत' और 'निर्भय' ना हो.हज़ारो-लाखो लोग नए साल के लिए उत्साहित नहीं है..उनमे से एक मैं भी हूँ. तुममे कुछ तो बात थी जो तुम लाखो लोगो को एक साथ जोड़ कर चली गयी, बस ये एकजुटता..ये आदर-सम्मान ऐसे ही बना रहे. शायद हमारा-तुम्हारा साथ सिर्फ तेरह दिनों का ही था, ये साथ लम्बा चलता तो अच्छा लगता. तुम ना होते हुए भी हम सब के बीच हो..हम सब के साथ हो. तुम हम सब के साथ ज़िन्दगी की आखिरी सांस तक रहोगी.
अलविदा मेरी 'हमउम्र'!
अच्छा लिखते हो...मुझे भी लिखना है ..लेकिन ब्लॉग्गिंग समझ नहीं आ रही ..आप सब को देख के तलब हो उठी है लिखने की जिसे बरसों से दबा के रखा था ..!!
ReplyDeleteShukriya aapka! aap bhi likhiye...achchha lagega!
Deleteकुछ नहीं बदलने वाला हैं | लोग इस मैं भी सुबह से सर्त लगा रहे थे फ़ासी होगी की उम्र कैद |
ReplyDeleteअब तुम ही बताओ हमारा समाज कहाँ हैं ?